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________________ ॥ दंडकमकरणं सटीकम् ॥ (१६५) पृथवि पाणी अग्नि, अने चोथो वलि वाय, कालचक्र असंख्याता, त्यांइ जीव रहाय. बेइंद्रिय तेइंद्रियने, वली चौरेंद्रि मझार, संख्याता वरसा लगे, भमीयो कर्म प्रकार: सात आठ भव लगे, नर तियेचमें रहियो, मानव भव लहिने, साधुनो वेष में प्रहियो. ॥७॥ राग द्वेष छुटे नहि, किम थाये छुटकबार, पीण छे साध्य मन माहरे, तुंहीज एक आधार; तारण तरण में त्रिकरण, शुद्धे अरिहन्त लाधो, हवे संसारतणा भवमें, भमवो पुद्गल आधो ॥८॥ तुं मनोवांछित पूरण, आपदाचूरण स्वामी, ताहरी सेव लहिने में, हवे नव निधि पामी, अवर काइने इच्छु नहि, इण भव तुहिज देव, छ मने एक ताहरी, होजो भव भव सेव. ॥९॥ ॥ कळा ॥ इम सकळ सुखकर नगर जेसलमेर महीमा दिने दिने संवत सत्तर ओगणत्रीशे, दिवस दिवाली तणे; गुरू विमळचंद समान वाचक,विजयहर्ष मुशिष्य ए, श्री पार्थना गुण इम गावे, धर्मचंद्र सुजगीशए. ॥१॥ ॥ इति चोवीश दंडकस्तवन ।।
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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