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॥ दंडकस्तवनम् ॥
Hanuman
तुं ज्ञानी तो पण तुज आगळ, वीनक कहीए वातजी; चोवीशे दंडके हुं फरीओ, वर्णवु एह विख्यातजी. पुरे० ॥३॥ साते नरकतणो एक दंडक, असुरादिक दश जाणजी; पांच थावर ने त्रण विकलेंद्रिय, ओगणीश गणतां आणजी. पुरे० ॥४॥ पंचेंद्रिय तिर्यंच ने मानव, एह थया एकवीशजी; व्यंतर ज्योतिषी ने वैमानिक, एम दंडक चोवीशनी. पुरे० ॥५॥ पंचेंद्रिय तिथंच ने मानव, पर्याप्ता जे होयजी; ए सघळा देवमाहे उपजे, एम देव आगति दोयजी. पुरे० ॥६॥ असंख्यात आयुषे नर तीरि, निश्चे देवज थायनी: निज आयुषे सम के ओछे, पण अधिके नव जायजी. पुरे० ॥७॥ भुवनपति ने व्यंतरमांहे, संमुर्छिम तिर्यंचजी; स्वर्ग आठमे तांइ पुहवे, गर्भन सुकृत संचजी. पुरे० ॥८॥ आयु संख्याते जे गर्भज, नर तिर्यंच विवेकजी: बादर पृथ्वी ने बळी पाणी, वनस्पति प्रत्येकजी. पुरे० ॥९॥ पर्याप्ता एणे पांचे ठामे, आवो उपजे देवनी; एणे पांवे माही पण आगे, अधिकाइ कहुं हेवजी. पुरे० ॥१०॥ त्रीजा स्वर्गथकी मांडीने सुर, एकेंद्रिय नवी थायनी; आठमाथी उपरला सघळा, मानवाहि जायजी. पुरे ॥११॥
ढाल २ जी. आज नही जोरे दीसे नाहलो, ए देशी. नरकतणी गति आगति एणी पेरे, जीव भमे रे संसार; दोय गति ने दोय आगति जागीए, वळो विशेष विचार. नरक० ॥१॥ संख्याते आयुष पर्याप्ता, पंचेंद्रिय तिर्यंच: तिमहोज मनुष्य एहिज नरकमें, जाए पाप प्रपंच. नरक० ॥२॥ प्रथम नरकलगे जाए असनीयो, गोह नकुल तीम बीय;