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(२)
॥ दंडकविस्तरार्थः ॥
॥ शब्दार्थः ॥
नमि- नमस्कार करीने. चवीस-चोबीश. जिणे - जिनेश्वरोनेतेस्ततेमना सिद्धांतनो
वियार - विचार - स्वरूप.
लेस- लेशमात्र- किंचित्देसणओ - दर्शाववाथी.
दंडगपएहि - दंडकनां पदोवडेते - तेओने (- श्रीजिनेश्वरोने)
चिंय- निश्चय. थोसामि- स्तवीश
सुणेह - सांभळो. भो-हे.
भव्वा - भव्यजनो !
गाथार्थः चोवीश जिनेश्वरोने नमस्कार करीने तेमना सिद्धान्तनुं स्वरूप लेशमात्र देखाडवा पूर्वक (२४) दंडक + पदोवडे ( - दंडकनां स्थानवडे ) निश्चय तेमनी ( - जिनेश्वरोनी) स्तुति करीश ते हे भव्यो सांभळो !
विस्तरार्थः - आ ग्रंथमां अभिधेय ( - विषय) २४ प्रभुनी स्तुति करवानी छे, हवे ते स्तुति प्रभुना गुणनुं वर्णन - प्रभुनी कायनुं वर्णन - प्रभुनां वचनोनुं वर्णन इत्यादि द्वारा अनेक प्रकारे प्रभु स्तुति थइ शके छे, त्यां आ ग्रंथकर्ता 'गजसार मुनि' आ ठेकाणे सिद्धान्तरूप प्रभुनां वचनोना वर्णनरूपे प्रभु स्तुति करे छे, माटे मूळ गाथामां कह्युं छे के " तस्मुत्तवियारलेसदेसणओ-तेमना सिद्धान्तनुं स्वरूप लेश मात्र देखाडवा पूर्वक ( चोवीश दंडकपदोवडे ) हुं तेमने स्वीश. " वळी ए प्रमाणे जे स्तवना करवी ते पण हेलो नमस्कार कर्या बाद थाय छे माटे प्रथममां प्रथम " चोवीश जिनेश्वरने नमस्कार करीने " एम कहां ले. चालु पद्धति पण एज के के भगवानने प्रथम नमस्कार कर्या बाद तेमनी स्तुति बोलाय छे एज पडति आ गाथामां दर्शावी ले. हवे तेमना सिद्धान्तनो विचार लेश मात्र देखाडवाने जे स्तवना कर
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