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________________ || पं०पद्मविगणि प्रणीतम् ॥ पुणा आठ धनुष् षट् अंगुल देहडीरे; घमा उत्कृष्ट, त्रयरे (२) हाथ जघन्य शरीर छे रे साडापंदर धनुष् बार अंगुल लहरे; बीजे सवा एकत्रीश; पंकेरे (२) साडीबासठ धनुष्नीरे सवासो धनुपूनी धूमप्रभे लहीरे; मघाम अढीशत, धनुष्य (२) शत पंच गुरु सातमी रे ए उत्कृष्ट कही म्हें साते नरकनी रै; प्रेरवनी उत्कृष्ट, उत्तरे (२) उत्तरनी ते जघन्यथी रें भुवनपति वैण ज्योतिषीने सात हाथनी रे, (१५१) ॥२॥ 11311 11811 ॥५॥ तिम सोहम इशान, त्रीजेरे (२) तीजे चोथे षट् तणी रे ॥ ६ ॥ पांचमे छठे पांच, चार सातमे आठमेरे; चार लगे तिन हाथ, हाथरे (२) नाथ भाखे त्रण लोकनोरे ॥७॥ नव ग्रैवेयक बे कर, अनुत्तरे एक छे भू जल अग्नि ने वाय, तेहनी रे (२) अंगुल असंख्यम भाग छे रे ८ लाख जोजननी उत्तरक्रिय देवतारे, 1 वनस्पति प्रत्येक. झाझीरे [२] जोयण सहस उत्कृष्टधीरे ॥९॥ अंगुल असंख्य भाग जघन्यथी जाणीयेरे; बेइंद्रिय जोजन बार कोशरे (२) त्रण चउतिचौरिंद्रियेरे ॥१०॥ तिन कोश दनुजनी सहस जोयण तणीरे; तिरि पंचेन्द्रिय देह, वैक्रियरे ( २ ) लाख जोयण नव शत तथारे ॥ ११ ॥ (द्वार ५ ) - षट संघयण मनुज तिरि पंचेन्द्रि लह्यारे: farलेन्द्रिय छेवट, जाणोरे (२) शेष संघयणि अछेरे 59 ॥१२॥ ५ प्रथम प्रथम नरकना उत्कृष्ट अवगाहना ते आगल आगल जघन्य जाणवी. ६ व्यंतर, ७ नवमे, दशमे, अगीयारमे, बारमे देवलोके, ८ वज्रर्षभनाराच, ऋषभनाराच, नाराच, अर्ध नाराच कोटिका, सेवा ए ६ संघयण छे,
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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