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________________ (१३४) ॥ दंडकविस्तरार्थः ॥ :पयनवगे-नव स्थाने विगलाइ-विकलादि पुढवाइ-पृथ्विकाप विगेरे तियं-त्रिक ठाण--स्थान-पद तहि-त्यां (पृथ्व्यादि१०स्थानमां) दसगा--दशमांथी | जंति-जाय छे, गाथार्थ-अग्निकाय अने वायुकायनी गति पृथ्विकाय विगेरे नव स्थानकमां होय छ, विकलेन्द्रियो पृथ्विकाय विगेरे १० स्थानमाथी आवे छे, अने (पुनः ) त्यांज (पृथ्व्यादि १० स्थानमां ) जाय छे. विस्तरार्थ:-अग्नि ने वायुनी गति पृथ्व्यादि ९ पदमा (--४८ तिर्यंचमां )छे, ____ तथा विकलेन्द्रियमा आगति-पृथ्व्यादि १० पदथी कही ते पृथ्व्यादि ३ दंडकवत् १७९ जीवभेदथी जाणवी. तथा वि. कले० नी गति पण तेवीज रीते १७९ जीवभेदोमां जाणवी. गाथामा पुढवाइठाणदसगा विगलाइ तियं एटलां पदी विकलेन्द्रियोनी आगति कहे छ, अने विगलाइतियं तहिं जंति ए पदथी विकले. नी गति कही छे. त्यां विगलाइतियं ए पद डमरुकमणि न्यायथी बन्ने बाजु लागी शके छे. अवतरण-आ गाथाना पूर्वाधमां गर्भनतिर्यंचोनी आगति तथा गति, अने उत्तरार्धमां गर्भज मनुष्योनी आगति तथा गति कहे छे, ॥मूळ गाथा ३९ मी.॥ गमणागमणं गब्भय--तिरियाणं सयलजीवठाणेसु । सव्वत्थ जन्ति मणुआ, तेऊवाऊहि नो जन्ति ॥३९॥
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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