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ना श्लोकोद्वारा जणायछे.जेमांना केटलाएक कंठस्थ करणीयमुद्दाओ आ प्रमाणे-१-प्रथमना६ समुद्घातोनी स्थिति अंतर्मुहर्त अने ७. मा केवलीसमुद्घातनी स्थति समय ८.२-श्रीसर्वज्ञमहाराजाने त्र. ण संज्ञाभो पैकी एक पण संज्ञा न होय. कारण-कर्मना क्षयोपशमजन्य संज्ञाओ छे. ते क्षायोपशमिक भाव सर्वज्ञने न होय. ३-अवेयक अने अनुत्तरविमानवासि देवो-सामर्थ्य छतां पण प्रयोजनना अभाव उत्तरक्रिय रचना न करे. ४-देवोर्नु उत्तरवैक्रिय शरीर-उंचाइमा चतुरंगुलहीन लक्षयोजन. कारण-तेओ जमीनथी चार अगुल अस्पृष्ट रहेछे. तथा मनुष्यो तेवा नहि होवाथी चार अंगुल अधिक लक्षयोजन प्रमाण उत्तरवैक्रिय रचना करे. ५-मतान्तरे-वायु जीवो. ने एक वैक्रिय शरीरज होय एर. श्री अनुयोगद्वार वृत्तिमां कहेल छे ६ संमूछिम पंचेन्द्रियतिर्यचने सैडान्तिकमते सेवासंहनन अने कामपन्थिकमते छ ए संघयण होय. ७-परमाधार्मिक देवोने एक कृष्ण लेश्याज होय, ८ श्रवण नेत्रने कामेच्छा शेषत्रणने भोगेच्छा. ९-ज्यां केवल मनुष्योज उत्पन्न थइ शकेछे एवा आनतादि देव लोकना देवो एकसमयमा संख्याताज च्यवे तथा उपजे, कारणतेओनी उत्पत्ति संख्याता एवा गर्भज मनुष्योमांज होइ शके छे. १०-कर्मनायोगे श्रोताओने कदाच बोध न थाय तोपण अनुग्रह. बुद्धिथी उपदेशकने घणी निर्जरा थायज.
अनन्तर जणावेल काभग्रन्थिक अने सैडान्तिकना बे मतभेद पैकी अमुकज मत साचो छ,एवो निर्णय छद्मस्थ जीवो न करी शके. कारण-ए मतभेद वाचनाभेदजन्य छे. वाचना भेद थवा कार
छे-क्षयिकज्ञानवाला पूज्यपाद त्रिकालभावि सकलतीर्थपति महागजाओनो तो मूलथी एकजमत छे. कारण-अतीत अनन्त तीर्थंकरोमांना एक पण श्रीमान तीर्थंकरमहाराजाए अर्थदेशनाद्वारा एवो शब्दप्रयोग नथी कर्यों जे आ- परमाणु आदि पदार्थना