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४ - १० संज्ञाओ उपरांत केटलाएक मनुष्योने श्री आचारांग सूत्रमां कहेल १ मोक्ष २ धर्म ३ सुख ४ दुःख ५ जुगुप्सा ६ शोक ए ६ संज्ञाओ पण होय छे. परन्तु तेवा जीवो अल्प होवाथी मूलसूत्रमां आ अधिकार ग्रहण करेल नथी. ५ वायु विगेरेना ध्वजादि संस्थानो श्रीभगवतोसूत्रमा आधारे दर्शावेल छे. ६ ' सव्वे वि चउक्साया' आ वचन प्रथपना अगीआर गुणस्थानकोना जीवने उद्देशीने कहेल छे. ७ सामान्यथी सात नरकस्थानकोni त्रण लेश्याओ कहो. विशेषथी दरेक नरकस्थाने एकज अवस्थित लेश्या होय ते आ प्रमाणे, पहेलो बीजी नरकमां का पोतलेश्या, श्रीजी नरकमां उपरना प्रस्तटोमां कापोतलेश्या, नीचेना प्रस्तटोमां नीललेश्या, चोथी नरकमां नीललेश्या, पांचमीमां उपरना प्रस्तटोमां नीललेश्या, नीचेना प्रस्तटोमा कृष्णलेश्या. छुट्टी सातमी नरकमां कृष्णलेश्या अने तेवी रीते देवलोकमां पण सामान्यथी ६ - लेश्याओ कही. विशेषथी भुवनपति तथा व्य न्वरोमां पहेली - ४ - लेश्याओ तथा ज्योतिषि तथा सौधर्मेशान देवलोकमां तेजोलेश्या, ३-४-५मा देवलोकमां पद्मलेश्या होय. आगळं अनुत्तरविमानसुधीना देवस्थानोमा शुक्ललेश्या होय. ८ पृथ्वी - जल - वनस्पतिमां कार्ममन्थिकमते वे अज्ञान अने सेडान्तिकमते औपशमिक दर्शनने वमतां तथा ते त्रण दंडकोमां उत्पन्न थतां - ईशानसुधीनां देवोने स्वीकारेल सास्वादनदर्शनना योगे अन्तर्मुहुर्त काल सूधी अपर्याप्त अवस्थामां वे ज्ञान पण होय.
तथा अवचूर्णिकारना समयथी पश्चाद्भाविसमयमां विद्यमान वृत्तिकार श्रीरूपचन्द्रजी महाराज — जं- श्री होरसूरिजी महाराजना शिष्य उपाध्याय भानुचन्द्रगणिना शिष्य उदयचंद्रजोना शिष्य हता. तेमणे विक्रम संवत् १६७५ना जेठ सुद ६ गुरुवारे ५३६ लोक प्रमाण - अवर्णिने अनुसरनारे आवृत्ति बनावी. एम प्रशस्ति
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