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________________ - होय छै- माटे ४ समु०. तियसेसे-शेष दंडकमां ३ समुद्धात होय. अहिं २४ दंडकमां समुद्घातो कही पण तेमां ओघ ( सामान्य ) एकेन्द्रियमां चार कही ते मात्र पर्याप्त लब्धिवंत वायुकायनेज होय अने बाकीनाओने उपर विस्तरार्थमां बताव्या प्रमाणे समुद्घातो होय छे. ते जाणवी " तियसेसे" बाकीनाओने त्रण एम लख्यु छ, पण तेनो विचार उपर लख्या प्रमाणे जाणवो, ॥ इति समुद्घातहारम् ॥ विगल दुदिट्ठी-विकलेन्द्रिय जीवोने सम्यकत्व अने मिथ्यात्व एबे दृष्टि छे, त्यां पूर्वे भवमाथी उपशम सम्यकल वमतो जीव सास्वा० सम्य० कंइक बाकी रहेतां बीन्द्रियादि पणे उत्पन्न थाय तोअपर्याप्तपणामां प्रथम अन्तर्मु. मात्र सास्वादन सम्यक्त्व होय, ने त्यारवाद आखा भवपर्यन्त मिथ्यादृष्टिपणुंज होय छे. ___थावरमिच्छ-स्थावरना पांचे दंडक मिथ्यादृष्टि वाला छे. आविचार सिध्यान्तकारने मते जागवो कारणके तेओ ' उभयाभा. वो पुढवाइसु कहे छे अने कर्मग्रंथकारोए तो प्रथम मिथ्या अने द्वितीस सास्वादन गुणस्थान कहेला छे. सेसतियदिहि-शेष १७ दंडक त्रणे दृष्टिवाला छे, तथा सम्मूमनु० मिथ्यादृ०छे अने सम्मू तियचो मिथ्याह० नथा अपर्या० पणामां मथम अन्तर्मु० मात्र( सास्वादनी होवायी )सम्यगदृष्टि छे, ॥ इतिष्टिद्वारम्॥
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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