SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20Soब्लकन तिळकेन सुलग्नेधिवास्य व्यक्तास्यलोचनं । ततोऽभिषिच्य चाम्यर्चेत्ततः कुर्यात् क्रियाधिकम् । ततो विशेषः। शस्नानादिविधिमाधाय सिद्धचक्रं यथागमम् । उद्धृत्य वेदिकापीठे न्यस्य श्रीचंदनादिभिः ॥॥ls संपूज्य सिद्धमात्मानं ध्यायनष्टोत्तरं शतम् । जातीपुष्पैर्जपेन्मूलमंत्रेण ज्ञानमुद्रया ॥ ९॥ ओंकाराधो श्रिभागी वलयनन्यस्तम निमद्वं ही पिंडात्मादितौनाहतममृतपृषत्स्यदिनालं लिखित्वा । अस्यौसेत्यौ नयो युक् सकलशशिकृतं तद्वहिस्तद्वहिस्तु संज्ञानालोकचर्या बलतप इति चानादिसंसिद्धमंत्रः ॥१०॥ तद्वचाथ स्वरोयं वसुदलकमलं चांतरे तद्दलाना मों ह्रीं श्रीं है मुखात्यानिलवियदमुखा शेषवर्गश्च युक्तम् । दि करे ॥ ६ ॥ फिर शुभ लग्नमें तिलकविधि मुखोद्घाटन नेत्रोन्मीलन आदि पूर्वोक्त क्रिया करके अभिषेकपूर्वक पूजा करे ॥७॥ यहां एक क्रिया विशेष है कि स्नानादिविधि करके शास्त्रके अनुसार सिद्धचक्रको चंदनादिसे वेदीपर लिखकर पूजके सिद्ध आत्माका ध्यान र करता हुआ ज्ञानमुद्रासे एकसौ आठ चमेलीके फूलोंसे जाप करे ॥ ८॥९॥ “ ओंकारा" इत्यादि तीन श्लोकोंमें कही गई विधिके अनुसार सिद्धचक्र वनावे ॥१०।११ । १२॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy