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यस्यान्माल्य निसर्गजे श्रवणयोर्वज्रेण रंध्रे हरिः शच्यासेचनकं वपुत्रिजगतां भक्त्याभिसंस्कारयेत् । त्रैवयज्ज्वलसूत्रदृब्धयवमत्सिद्धार्थरत्नश्रिय-
चर्चा चारुभुजेस्य भूषणमयं बध्नंतु ताः कंकणम् ॥ ७६ ॥ इंद्रकरहीरककृतकर्णवेधाद नंतरं प्रोक्षणकाधिकृतनारीभिर्जात्यकुंकुमश्रीखंडागरुकर्पूरचचनपूर्वकं दक्षिणभुजे षोडशाभरणात्मककंकणविधानम् ।
गृह्णति यस्य समयामृतधौतचित्ता नामानि कोटिमृषयः कलुषक्षयाय । मेरौ महेंद्र इव संव्यवहारहेतास्तं व्याहरेहमिह यष्टमतेन नाम्ना ।। ७७ ।। अभिषेक करे । यह सर्वोषधिस्नपन विधि हुई ॥ ७५ ॥ इसीप्रकार जन्माभिषेक के स्थानरूप आकार शुद्धिका भी अभिषेक करके आगे कहे जानेवाले मंत्रसे जिन प्रतिमाका संस्कार करे ॥ " ओं णमो " इत्यादि “ स्वाहा " तक श्रीवर्धमानमंत्र है । " यस्यो ” इत्यादि बोलकर कर्णवेध करके स्त्रियोंसे केशर चंदन अगुरु कपूरकर लेप किये गये सोलह आभूषणोंके साध दाहिनी भुजाकी तरफ कंकण बांधे ॥ ७६ ॥ “ गृह्णति " इत्यादि बोलकर प्रभुका नाम रखनेके लिये कुंकुसे रंगे हुए पुष्प अक्षतोंको प्रतिमाके ऊपर क्षेपण करे ॥७७॥
भा०टी०
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