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________________ पिंचकस्नपनम् । व्याघ्री गुडूची सहदेव सिंही वरी कुमारी शतमूलिकानाम् । मूलैर्बलायाश्च युतेन सर्वैः कुंभांभसाहं स्नपये जिनार्चाम् ॥ ७४ ॥ दिव्यौषधिमूलाष्टकस्नपनम् । कल्कूलैला जातिपत्रलवंग श्री खंडोग्रा कुष्ठसिद्धार्थमय्या | सर्वौषध्यावासितैस्तर्थितौयैः कुंभोद्गीर्णैः स्नापयाम्यर्हदर्चाम् ॥ ७५ ॥ सर्वौषधिस्नपनम् । एवं जन्मामिषेकस्थानीयमाकरशुद्ध्याभिषेकं विधायानेन मंत्रेण जिनार्चामधिवासयेत् । ओं णमा भयवदो वढमाणस्स रिस्सहस्स जस्स चक्कुजलंतं गच्छत् आयासं पायालं लोयाणं भूयाणं जूए वा विवादे वा रणांगणे वा गयंगणे वा थंभणे वा मोहणे वा सव्वजीवसत्ताणं अपराजिदो भवदु मे रक्ख रक्ख रक्ख स्वाहा । श्रीवर्धमानमंत्रः । ऊमर, पीपल, शमी, ढाक, वड़-इन पांचोंकी छालसे मिश्रित जलसे पूर्ण कलशोंसे स्नपन करे ॥ ७३ ॥ “ व्याघ्री ” इत्यादि बोलकर उसमें कथित व्याघ्री ( एरंड ) गिलोइ, आदि आठ उत्तम औषधियोंके मूलसे मिश्रित जलसे पूर्ण कलशोंसे अभिषेक करे ॥ ७४ ॥ " कल्कूलै " इत्यादि बोलकर उसमें कही गई औषधियोंसे मिश्रित जलसे पूर्ण कलशोंसे 2000ra 50000 DODOD
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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