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प्र०सा० अष्टादशमंगलद्रव्याभिषेकः ।
भान्टी० श्यामाशमींदीवरभंगविष्णुक्रांतागुडूची सह देविकाभिः । ॥९ ॥
अ०४ मित्रैः पवित्रैः सलिलैः संपूर्णैरौप्यैर्जिना! स्नपयामि कुंभैः ॥ ७१ ।। सप्तौषधस्नपनम् ।
लवंगभल्लातकबिल्वजातीफलाम्रकमामलवारिपूर्णैः ।
शुभैर्घटैरिष्टफलाप्तिहेतोः संस्नापये स्नातकनाथविंबम् ॥ ७२ ॥ फलपंचकस्नपनम् ।
उदुम्बराश्वत्थशमीपलाशन्यग्रोधकल्कव्यतिकीर्णमर्णः ।
तैर्थे वहद्भिः कलशैवलर्भक्त्याभिषिचामि जिनेंद्रमूर्तिम् ॥ ७३ ॥ अभिषेक हुआ। “ दूर्वा " आदि बोलकर दूव आदि अठारह मंगलीक वस्तुओंसे मिले हुए जलके घड़ोंसे अभिषेक करे ॥ ७० ॥ यह मंगल द्रव्याभिषेक हुआ। “ श्यामा ” इत्यादि बोलकर उसमें कथित श्यामा आदि सात वनस्पतियोंसे मिले हुए जलपूर्णकलशोंसे अभिषेक । करे ॥ ७१ ॥ “ लवंग" इत्यादि बोलकर उसमें कहे हुए लवंग, भल्लातक, वेल, जायफल,
इन पांच उत्तम फलोंसे मिश्रित निर्मल जलसे भरे हए घडोंसे प्रतिमाका अभिषेक IS करे ॥ ७२ ॥ यह फलपंचक स्नपन हुआ ॥ “ उदुंबरा " इत्यादि बोलकर उसमें कथित
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