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खन्छन् लन्डन्न्
वार्य परमार्थसन्निहितोस्मि स्वाहा । अनेन प्रतिमाया अंगप्रत्यंगानि परमामृशन् सप्तवारानभिमंत्र्य सकली कुर्यात् । ततो दशापि लोकपालानावाहनादिविधिनोपचरेत् । तथाहि ।
इंद्रा मिश्राद्धदेवा शरपतिवरुणाधाररै देशनाग्रे धिष्णोशा दिक्षु वेद्या ? ॥५१॥ इंद्रादिदिक्पालानामावाहनादिपुरस्सराध्यषणाय समस्तहव्यद्रव्यं जुहोमीति स्वाहा ।
___ अथ पृथगिष्टिः। |दिगीशाः शब्दये युष्मानायात सपरिच्छदाः। अत्रोपविशतैतान्वो यजे प्रत्येकमादरात्॥५२॥
दिक्षु पुष्पाक्षतं क्षिपेत् । अत्र रूप्याद्रिस्पीत्यादि वृत्ताष्टकं प्रागुक्तमेव वक्ष्यमाणमंत्रोपेतं प्रयुजीत । तथाहि ।
कन्कन्द
उपांगोंको छकर सातवार मंत्रितकर सकलीकरण क्रिया करे। उसके बाद दश लोकपालोंका आवाहन आदि विधिसे सत्कार करे । वह इस तरहसे है-" इंद्रा" इत्यादि तथा “इंद्रादि बोलकर हवन करनेकी सामग्रीसे अवाहनादि पूर्वक इंद्रादिका सत्कार करे ॥ ५१ ॥ अब वेदीपूजा कहते हैं। “ दिगीशा " इत्यादि श्लोक बोलकर विशाओंमें पुष्प अक्षत|४| क्षेपण करे ॥ ५२ ॥ यहांपर " रूप्याद्रि” इत्यादि पहले कहे हुए आठ श्लोकोंका मंत्री पूर्वक प्रयोग करे । वह इस प्रकार है । “रूप्याद्रि " इत्यादि तथा “ हे इंद्र " इत्यादि