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________________ ७- TO TO? माधी रूप्याद्रि................................ ॥ ५३ ।। हे इंद्र आगच्छागच्छ इंद्राय स्वाहा, इंद्रपरिजनाय स्वाहा, इंद्रानुचराय स्वाहा, अग्नये - अ०५ स्वाहा, अनिलाय स्वाहा, वरुणाय स्वाहा, सौमाय स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा ओं स्वाहा भूः स्वाहा स्वः स्वाहा, ओं इंद्राय स्वगणपरिवृताय इदमय पाद्यं गंधं पुष्पं दीपं धूपं चरुं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा। रुक्मारु.................................... ॥ ५४॥ हे अग्ने आगच्छगच्छ अग्नये स्वाहा.............. । ........... ॥५५॥ हे यम आगच्छागच्छ यमाय स्वाहा................ । आरूढं.. ............॥५६॥ हे नैऋत्य आगच्छागच्छ नैऋत्या स्वाहा........... । मंत्र बोलकर इंद्रको जल आदि अष्ट द्रव्य चढावे ॥ ५३॥ “रुक्मारु " इत्यादि तथा “ हे अग्ने” इत्यादि बोलकर अग्निकुमारदेवोंको जल आदि द्रव्य चढावे ॥ ५४॥ “ कल्पांता " इत्यादि तथा " हे यम" इत्यादि बोलकर यमदेवको जल आदि चढावे॥५५॥ “आरूढं" । इत्यादि तथा “हे नैर्ऋत्य " इत्यादि बोलकर नैर्ऋत्य दिक्पालको अर्घ चढावे ॥ ५६ ॥ कल्पांताः ............ ७कन्छन्
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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