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________________ प्र०सा० कोदंडकांडस्टदृष्टिमुष्टिमरुद्भटोद्भव्यकथानुरक्तम् । माधी वेद्याः पुरो द्वारमिमामवंतं सोमोपगृहाम्युचितैर्भवंतम् ॥ १८१॥ ओं धनुर्धराय अर अर त्वर त्वर हूं सोम आगच्छागच्छ इदं जलं............ ! द्विवर्गदंडोद्यतचंडदंड प्रचंडसामाजिकसंकथास्थम् ।। वेदिप्रतीहारमपाच्यमेतं पतिं यम त्वामनुकूलयामि ॥ १८२ ॥ ओं दंडधराय अर २ त्वर २ हूं यम आगच्छागच्छ इदं....................! विषाक्तजिह्वायुगलीढसकस्फुलिंगांत्युग्रभुजंगरज्जुः । प्रतीच्यवेदीमुखप्तभृत्यवृतः प्रचेतः कुरु चारुचेतः ॥ १८३ ॥ ओं पाशधराय अर २ त्वर २ हूं वरुण आगच्छागच्छ इदं............ । शासनदेवताओंका पूजन समाप्त हुआ । अब द्वारपालोंको अनुकूल करते हैं । “सोम इत्यादि श्लोक बोलकर उन सोम आदिको सन्मुख करनेके लिये दिशाओंमें पुष्प अक्षतकोश हवखेरै ॥१८० ॥ “ कोदंड" इत्यादि तथा “ओंधनु" इत्यादि वोलकर सोमको जल आदि आठ द्रव्य चढावे ॥१८१ ॥ "द्विवर्ग" इत्यादि तथा “ओं दंड" इत्यादि बोलकर यमको जल आदि चढावे ॥ १८२ ॥ “विषाक्त" इत्यादि तथा “ओं पाश" इत्यादि बोलकर वरुणको जल आदि चढावे ॥ १८३ ॥ “इतस्ततो" इत्यादि तथा “ओं गदा " इत्यादि बोलकर | लन्डन्न्कन्सन्कलन
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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