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ओं ह्रीं वामनप्रतीहार.................................स्वाहा । मक्ता ....................................................... ।
स्रपुष्पोज्ज्वलपुष्पदंत बलिना तृप्योत्तरद्वाः स्थितः ॥ १४२ ॥ ओं ह्रीं पुष्पदंतप्रतीहार...............................स्वाहा ।
इति मंडलप्रतिष्ठाविधानं । अथातो वेदिमतिष्ठविधानं । आदेशावहितान्यवासवपरीवारो विनिर्माप्य यां दृक्शुद्धिप्रतिवृद्धये प्रयजते सौधर्मपोऽहत्मभुम् । सोयं वेदिमतल्लिकापरिकरश्चंद्रोपकायोप्ययं सोत्र स्फूर्जति मंगलादिवदिमे ते भांति भांडोच्चयाः ॥ १४३॥ वेद्या चंद्रोपकादिषु च कुंकुमाक्तं पुष्पाक्षतं क्षिपेत् ।
प्रोक्ष्य प्रोक्षणमंत्रपूतपयसा वेदी वरायैः समा रद्वार" इत्यादि और "ओं ह्रीं" इत्यादि बोलकर वामनद्वारपालको प्रसन्न करे ॥१४१॥ "मुक्ता
स्रक पुष्प " इत्यादि “ओह्रीं" इत्यादि बोलकर पुष्पदंत द्वारपालको अनुकूल करे ॥१४२॥४| इस प्रकार मंडलप्रतिष्ठाकी विधि पूर्ण हुई । अब वेदीप्रतिष्ठाकी विधि कहते हैं । “आदेश शा" इत्यादि बोलकर वेदीके चंदोए आदिमें कुंकुंसे रंगे हुए पुष्प अक्षत क्षेपै ॥ १४३ ॥
न्सलन्डन्न्न्न्न्