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[२] ज्योतिषी पांच देवताका एक दण्डक । वेमाणी-वैमानिक देवताका एक दंडक । ए चोवीस दण्डक हुए ॥
संग्रहणि गाथे* मरिशेगाहासंघयणमंठाण कसायं तह य
हुति सन्नाओ। लेसिदिय समुग्याएं सन्नी वेप य पजत्ती ॥१॥ दिट्टी देसण नाणे जोगुवोगे तहा किमाहारे । उववाय ठिई समुग्याय चवणे गइरागई चेव॥२॥ पाणे "जोगे।
चौवीस दण्डक पर शरीरादि पच्चीस द्वार चलते है उनका स्वरूप कहते हैं--
१ शरीर द्वारशरीर किसको कहते हैं? शीण होनेवाला अर्थात् विनाश होनेवाला है इसलिए इसको शरीरकहते हैं, इस के पांच भेद हैं-१औदारिक, वैक्रिय,३आहारक, ४ तैजस, ५ कार्मण।
(१) उदार अर्थात् प्रधान अथवा स्थूल पुद्गलोंसे बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है, जिस कर्म से ऐसा शरीर मिले उसे औदारिकशरीर कहते हैं. * ये दो संग्रहणि गाथाएँ जीवाभिगम सूत्र प्रथम प्रतिपत्ति की है