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तीर्थङ्कर और गणधरी का शरीर प्रधानपुद्गलों से बनता है. और सर्वसाधारण का शरीर स्थूल, असार पुद्गलों से बनता है. मनुष्य और तिर्यञ्च को औदारिकशरीर प्राप्त होता है।
(२) जिस शरीर से विविध क्रियाएँ होती हैं, उसे वैक्रिय शरीर कहते हैं, जिस कर्म के उदय से ऐसे शरीर की प्राप्ति हो, उसे वैक्रियशरीर कहते हैं।
विविध क्रियाएँ ये हैं:-एक स्वरूप धारण करना, अनेक स्वरूप धारण करना छोटा शरीर धारण करना; बड़ा शरीर धारण करना; आकाश में चलने योग्य शरीर धारण करना, भूमि पर चलने योग्य शरीर धारण करना, दृश्य शरीर धारण करना, अदृश्य शरीर धारण करना, इत्यादि अनेक प्रकार की अवस्थाओं को वैक्रियशरीरधारी जीव कर सकता है।
वैक्रियशरीर दो प्रकार का है;-(१)औपपातिक और (२) लब्धिप्रत्यय.
देव और नारकों का शरीर औपपातिक कहलाते है अर्थात उनको जन्म से ही वैक्रियशरीर मिलता है. लब्धिप्रत्ययशरीर, तियश्च और मनुष्योंको होता है अर्थात् मनुष्य और तिर्यञ्च, तप आदि के द्वारा प्राप्त