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________________ [३४] स्थलचर की अवगाहना जघन्य अंगुलके असंख्यात में भाग, उत्कृष्टी प्रत्येक गाउ की । खेचर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात में भाग, उत्कृष्टी प्रत्येक धनुष कीं । उरपरिसर्पको अवगाहना जघन्य अंगुलके असंख्यात में भाग, उत्कृष्टी प्रत्येक जोजन की । भुजपरिसर्पको अवगाहना जघन्य अंगुलके असंख्यात में भाग, उत्कृष्ट प्रत्येक धनुष की । ३ संघपण - तीन विकलेन्द्रिय और सन्नीतिर्यच पंचेन्द्रिय में संघयण पावे एक छेवट्ट । ४ संठाण - तीन विकलेन्द्रिय और असन्नी तिर्यच पंचेन्द्रिय में संठाण पावे एक- हुंडक । ५ कषाय - तीन विकलेन्द्रिय और असन्नी निर्यच पंचेन्द्रिय में कषाय पाये चार चार । ६ संज्ञा- तीन विकलेन्द्रिय और असन्नी तिर्यच पंचेन्द्रिय में संज्ञा पावे चार चार । ७ लेश्या - तीन बिकलेन्द्रिय और असन्नी तिथेच पंचेन्द्रिय में लेइया पावे तीन २ - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेहया । ८ इन्द्रिय- बेइन्द्रिय में इन्द्रिय पावे दोरसेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय । तेइंद्रिय में इंद्रिय पावे तीन
SR No.022356
Book TitleLaghu Dandak Ka Thokda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages60
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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