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________________ (२०) था और वही इस नगरका स्वामी तथा भोक्ता था । नगर कोटखाईसे युक्त और उसकी पर्वतमालामें कितनी ही ताँबे की खानें थीं जिनसे उस वक्त ताँबा निकाला जाता था और उसे गलागलूकर निकालनेका एक बड़ा मारी कारखाना भी कोटके बाहर, पासमें ही, दक्षिण दिशाकी और स्थित था । नगरमें ऊँचे स्थान पर एक सुंदर प्रोत्तुंग जिनालयदिगंबर जैन मंदिर-था, जिसमें यज्ञस्थंभ और समृद्ध कोष्ठों ( कोठों ) को लिये हुए चार शालाएँ थीं, उनके मध्यमें वेदी और वेदीके ऊपर उत्तम शिखर था । कविने इस जिनालयको वैराट नगरके सिरका मुकुट बतलाया है । साथही, यह सूचित किया है कि वह नाना प्रकारकी रंगबिरंगी चित्रावलीसे सुशोभित था और उसमें निर्ग्रन्थ जैन साधुभी रहते थे। इसी मंदिरमें बैठकर कविने लाटीसंहिताकी रचनाकी है। संभव है कि पंचाध्यायी भी यहीं लिखी गई हो। यह मंदिर साधु दूदाके ज्येष्ठपुत्र और फामनके बडे भाई ‘न्योता ने निर्माण कराया था; जैसा कि संहिताके निम्न पद्यसे प्रगट है: तत्राद्यस्य वरो सुतो वरगुणो न्योताहसंघाधिपो । येनैतज्जिनमंदिरं स्फुटमिह प्रोत्तुंगमत्यद्भुतं । वैराटे नगरे निधाय विधिववत्पूजाश्च वह्वयः कृताः । अत्रामुत्र सुखप्रदः स्वयशसः स्तंभः समारोपितः ॥ ७२ ।। आजकाल वैराट ग्राममें पुरातन वस्तु-शोधकोंके देखने योग्य जो तीन चीजें पाई जाती हैं उनमें पार्श्वनाथका मन्दिरभी एक खास चीज है और यह संभवतः यही मन्दिर मालूम होता है जिसका कविने लाटीसंहितामें १ अकबरके पिता हुमायूँ और पितामह 'बाबर का भी कबिने उल्लेख किया है और इन सब को 'गत्ता' जातिके बतलाया है। २ वैराटग्राम और उसके आस पासका प्रदेश आज भी धातुके मैलसे आच्छादित है, ऐसा डा० भांडारकरने अपनी एक रिपोर्ट में प्रकट किया है, जिसका नाम अगले फुट नोटमें दिया गया है।
SR No.022354
Book TitleLati Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
PublisherManikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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