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________________ (१६) नई नई मौलिक रचनाएँ-तय्यार करने में समर्थ होना चाहिये' वह बात उनमें जरूर थी और ये दोनों ग्रन्थ उसके ज्वलंत उदाहरण जान पड़ते हैं । इन ग्रन्थोंकी लेखनप्रणाली और कथनशैली अपने ढंगकी एक ही है । लाटीसंहिताकी सन्धियोंमें राजमल्लको 'स्याद्वादानवद्य-पद्य-गद्य-विधाविशारद-विद्वन्मणि' लिखा है और ये दोनों कृतियाँ उनके इस विशेषणके बहुत कुछ अनुकूल जान पड़ती हैं । लाटीसंहिताको देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि पंचाध्यायी उसके कर्तासे भिन्न किसी और ऊँचे दर्जेके विद्वानकी रचना है । अस्तु । ___ मैं समझता हूं, ऊपरके इन सब उल्लेखों प्रमाणों अथवा कथनसमुच्चय परसे इस विषयमें कोई सन्देह नहीं रहता कि पंचाध्यायी और लाटीसंहिता दोनों एकही विद्वानकी दो विशिष्ट रचनाएँ हैं, जिनमेंसे एक पूरी और दूसरी अधूरी है । पूरी रचना लाटीसंहिता है और उसमें उसक कर्ताका नाम बहुत स्पष्टरूपसे 'कविराजमल्ल ' दिया है । इसलिये पंचाध्यायीको भी 'कविराजमल्ल' की कृति समझना चाहिये, और यह बात बिलकुल ही सुनिश्चित जान पड़ती है। लाटीसंहिताको कविराजमल्लने वि० सं० १६४१ में आश्विन शुक्ल दशमी रविवारके दिन बनाकर समाप्त किया है । जैसा कि उसकी प्रशस्तिके निम्नपद्योंसे प्रकट है: श्रीनृपतिविक्रमादित्यराज्ये परिणते सति । सहैकचत्वारिशद्भिरब्दानां शतषोडश ॥ २॥ तत्राप्यश्विनीमासे सितपक्षे शुभान्विते । दशम्यां दाशरथेः (श्च) शोभने रविवासरे ॥ ३ ॥ - २ एक सन्धि नमूनेके तौर पर इस प्रकार है:-इति श्रीस्याद्वादानवद्यपद्य विद्याविशारदविद्वन्मणिराजमल्लविरचितायां श्रावकाचारापरनाम लाटीसंहितायां साधुदात्मजफामनमनःसरोजारविंदविकाशनकमार्तण्डमण्डलायमानायां कथामुख वर्णनं नाम प्रथमः सर्गः ।
SR No.022354
Book TitleLati Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
PublisherManikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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