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________________ ३ए शरीर करे, त्यारे देवता तथा मनुष्य ए बेउ उजा थका मस्तकनी पासे सरखा देखाय, माटे मनुष्य लाख योजनथी चार अंगुल अधिक वैक्रिय शरीर करे, तोज उना थका सरखा देखाय. (य के ) तथा (तिरियाणं के०) तिरवां एटले तिर्यच जीवोनुं विकुर्वे, तो (नव जोयणसयाई के०) नव योजनशतानि, एटले नवसें योजन सुधीनु वैक्रिय शरीर थाय. (तु के०) तु एटले वली (नारयाणं ) नारकाणां, एटले नारकी जीवोनुं पोतपोताना शरीरथकी (दुगुणं के०) द्विगुणं, एटलें बमणु विकुर्वे त्यारे थाय, अर्थात जेनुं पांचसे धनुष्यनुं खानाविक शरीर होय, ते मूल शरीरथी बमएं-हजार योजन- विकुर्वणाकाले वैक्रिय शरीर की शके. ए रीते (वेवियसरीरं के०) वैक्रियशरीरं. एटले वैक्रिय शरीर जे दंमके जेटलुं , ते दंमके तेटबु (जणियं के०) नणितं, एटले का ॥ ए॥ हवे ए वैक्रिय विकुर्वणा कया दंडकना जोवोने केटका काल पर्यंत रहे, ते कहे छे. अंतमुहुत्तं निरए, मुहुत्त चत्तारि तिरिय
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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