SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ तथा १७६नी साथे मेलवीए, त्यारे ५५७ नेद थाय, ए जलचर जीवो आश्रयी जाणवा. ... हवे ए गर्नज तिर्यचना पांच नेद विवरीने कहे बे. तेमा प्रथम उरःपरिसर्पने विषे २६७ नेदना जीव आवे, अने सातमां तथा बहा मली बे नरकना पर्याप्ता तथा अपर्याप्ताना चार नेद पूर्वोक्त ५२७ मांश्री वीए, त्यारे शेष ५२३ नेदमां एनी गति जाणवी, तथा स्थलचरनी २६७ जेदनी आगति अने सातमा, बहा तथा पांचमा, ए त्रण नरकना पर्याप्ता अपर्याप्ता मली उ नेद ५२७ मांथी वर्जतां शेष ५१ नेदने विषे गति जाणवी. तथा खेचरनी ५५७ नेदनी आगति अने सातमां, हा, पांचमा अने चोथा, ए चार नारकीने पर्याप्ता अपर्याप्ता करतां आठ नेद थाय, ते ५२७ मांथी वजीए, त्यारे शेष ५१ए नेदने विषे एनी गति जाणवी. तया जुजपरिसर्पना २६७ जेदनी आगति अने सातमा, हा, पांचमा चोथा अने त्रीजा, ए पांच नारकीना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मली दश नेद ५२७ मांथी व.. र्जीए, त्यारे शेष ५१७ जेदने विषे एनी गति जाणवी.
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy