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________________ १०१ गर्नज तिर्यच तथा पृथिवी, अप् अने वनस्पति भनी त्रेवीश नेद पर्याप्ताना अने त्रेवीश अपर्याप्ताना एवं बेंतालीश नेदमा आवी उपजे, ते गति जाणवी. ए रीते सात नारकीनो एक दंमक तथा दश जवनपतिना दश दमक अने व्यंतर देवोनो एक दंक मली बार दमके गति आगति कही. ___ हवे पृथिवीकाय, अपकाय अने वनस्पतिकाय एत्रण दमकने विषे बसें त्रेतालीश नेदना जीव आवे, तेनां नाम कहे . ४७ तिर्यच, १०१ संमूर्बिम मनुष्य तथा पंदर कर्ममिना मनुष्य पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एवं १७ए थया. तथा चौसठ जातिना देवो आवे, तेना नाम कहे . पंदर परमाधामी, दश जवनपति, सोल व्यंतर, दश तिर्यग्जूंजक, दश ज्यो-, तिषी तथो सौधर्म अने ईशान ए बे देवलोकना देवो अने एज बे देवलोकनी नीचे रहे , ते एक नेद किल्बिषीया देवोनो मली चोसठ नेद थया. ते पुर्वोक्त १७ए नेद साथे मेलवीए, त्यारे २४३ नेद थाय. हवे
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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