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दिद्वि-पडिलेह एगा छ उड्ढ पप्फोड तिग-तिगंतरिया। अक्खोड पमजणया नव नव मुहपत्ति पण-वीसा ॥२०॥ पायाहिणेण तिय तिय वामेयर-बाहु-सीस-मुह हियए । अंसुड्ढाहो पिटे चउ छप्पय देह-पण वीसा ॥२१॥ आवस्सएसु जह जह कुणइ पयत्तं अ-हीणमइरित्तं । ति-विह-करणोवउत्तो तह तह से निजरा होइ ॥२२॥ दोस अणाढिय थढिय पविद्ध परिपिडियं च टोल-गई । अंकुस कच्छभ रिंगिय मछुव्वत्तं मण पउलु ॥२३॥ वेइय-बद्ध भयंतं भय गारव मित्त कारणा तिन्नं । पडणीय रुद्र तजिय सढ हीलिय विपलिउंचिययं ॥२४॥ दिट्ठमदिड सिंगं कर तम्मोअण अलिद्धणालिद्धं ऊणं उत्तर-चूलिअ मूअं ढड्ढर चुडलियं च ॥२५॥ बत्तीस-दोस-परिसुद्धं किइ-कम्मं जो पउंजइ गुरूणं । सो पावइ निव्वाणं अचिरेण विमाण-वासं वा ॥२६॥ इह उच्च गुणा विणओवयार माणा-ऽऽइ-भंग गुरु-पूआ। तित्थयराण य आणा सुय-धम्मा-ऽऽराहणा किरिया ॥२७॥ गुरु-गुण-जुत्तं तु गुरुं ठाविज्जा अहव तत्थ अक्खाई । अहवा नाणाइ तियं ठविज सक्खं गुरु-अभावे ॥२८॥ अक्खे वराडए वा कढे पुत्थे अ चित्त-कम्मे अ । सम्भावमभावं गुरु-ठवणा इत्तराऽऽव-कहा ॥२९॥ गुरुविरहमि ठवणा गुरूवएसोवदसणथं च । जिण-विरहम्मि जिण-बिंब-सेवणा-ऽऽमंतणं सहलं ॥३०॥