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________________ लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन नहीं है जबकि परमाणु स्कन्ध से भिन्न एक स्वतंत्र इकाई वाला द्रव्य है। प्रदेश ही सभी द्रव्यों का मापक है। परमाणु किसी का कार्य नहीं, अपितु कारणभूत है।" अर्थात् परमाणु द्रव्यतः नित्य है क्योंकि यह अविनाशी है और पर्यायतः अनित्य है क्योंकि विनसा गुण गलन, विध्वंसन आदि के प्रभाव से वर्णादि का नाश होता है एवं नये वर्णादि की उत्पत्ति होती है। अतः परमाणु नित्यानित्य है। भगवती सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी भी स्पष्ट करते हैं- “परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सासए असासए? गोयमा! सिय सासए सिय असासए । से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ सिय सासए, सिय असासए?गोयमा! दवट्ठयाए सासए वण्णपज्जवेहिं जाव फासपज्जवेहिं असासए। से तेणट्टेणं जाव सिय सासए सिय असासए ।। अर्थात् परमाणु शाश्वत भी हैं और अशाश्वत भी। द्रव्यापेक्षा वे शाश्वत हैं और पर्याय अपेक्षा से अशाश्वता पुदगल के परिणाम - गन्ध स्पर्श अगुरुलघु शब्द सुगन्ध उण शीत दुर्गन्ध अशुभ तीक्ष्ण कटु कषाय अम्ल मधुर मृदु सूक्ष्म चतुःस्पर्शी एवं आकाश (i)उच्छवास युक्त कार्मण, मन एवं वचन कर्कश स्निग्ध विससाबंध प्रयोगपरिणाम रू पी जीव के खंडभेद __बंध स्पर्श अस्पर्श पांच भेद प्रतरभेद बंधनप्रत्यय दीर्घ इस्व पर्णिकामेद अरुण (ii)पात्र प्रत्यय आलापन परिमंडल- अनुतटिका पीत (ii)परिणामज आलीन उत्करिका श्वेत शरीर प्रयोगक श्लेषण पर्व प्रयोग से उत्पन्न आयतन (i)समुच्चय उत्पन्न हुए प्रयोग से उत्पन्न (i)प्रतर (ii)उच्चय घन (iv)संहनन (i)प्रतर ()श्रेणि त्रिकोण चतुष्कोण भारी लोकप्रकाशकार ने बन्धन, गति, संस्थान, भेद, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु एवं शब्द इन दस पुद्गल परिणामों का भी विस्तृत निरूपण किया है। पुद्गल का प्रथम परिणाम 'बन्धन' दो प्रकार से होता है"- १. विनसाबन्ध और २. प्रयोगबन्ध। जब किसी पुद्गल परमाणु का स्नेह गुण के कारण स्वाभाविक मेल होता है अर्थात् बन्ध होता है वह विनसाबन्ध तथा किसी चेतन के द्वारा पुद्गलों का मेल करवाने पर वह प्रयोगबन्ध कहलाता है। इन दोनों के क्रमशः तीन*-बन्धनप्रत्यय, पात्र प्रत्यय, परिणामज प्रत्यय तथा चार- आलापन, आलीन, शरीर एवं प्रयोगक उत्तरभेद होते हैं। द्वितीय परिणाम ‘गति' दो प्रकार से होती है- १. स्पर्श करती हुई एवं स्पर्श नहीं करती हुई अथवा २. दीर्घति और इस्व गति। गति परिणाम के बल से पुद्गल लोक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक ही समय में जा सकता है। पुद्गल गति करते समय बीच-बीच में अन्य वस्तुओं का स्पर्श करता है तब गति स्पर्शगति कहलाती है और जब वस्तु का स्पर्श नहीं होता है तो वह गति अस्पर्शगति होती है। दूर देशान्तर पहुँचने में पुद्गल की दीर्घगति होती है और दूर न होने पर
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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