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________________ लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) एक स्कन्ध है। इसी प्रकार समस्त अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय भी एक-एक स्कन्ध हैं। उनका काल्पनिक अंश देश कहलाता है तथा उनका परमाणु जितना काल्पनिक अंश प्रदेश कहा जाता है। प्रदेश की सत्ता छहों द्रव्यों में होती है। जिसके विभाग न हो सके उस परमाणु जितने सूक्ष्म विभाग को प्रदेश कहते हैं। लोकप्रकाशकार कहते हैं ___निर्विभागा विभागाश्च प्रदेशा इत्युदाहृताः । ते चानन्तास्तृतीयस्यासंख्येया आद्ययोर्द्वयोः ।।" धर्मास्तिकाय आदि के वे विभाग जिनका और अधिक भाग न हो सके, प्रदेश कहे गए हैं। धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश हैं तथा आकाशास्तिकाय के अनन्त प्रदेश हैं। धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य अनन्त एवं अगुरुलघु पर्यायों से युक्त हैं। इनकी अनन्तता काल एवं भाव से है। आकाश की अनन्तता क्षेत्र से भी है। ये सब लघु एवं गुरु गुण से रहित होने के कारण अगुरुलघु पर्याय वाले कहलाते हैं। (4) पुद्गलद्रव्य- पूरण और गलन स्वभाव वाला पुद्गलास्तिकायद्रव्य द्रव्य से अनन्त द्रव्यरूप है। क्षेत्र से लोकप्रमाणरूप है, काल से शाश्वत है और भाव से वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्शयुक्त है।" गुण से लोकप्रकाशकार इसमें ग्रहण गुण मानते हैं, क्योंकि मात्र यही द्रव्य इन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जाता है, अन्य कोई द्रव्य नहीं। अतः यह ग्रहण गुण वाला है ___ गुणतो ग्रहणगुणो यतो द्रव्येषु षट्स्वपि। भवेत् ग्रहणमस्यैव न परेषां कदाचन।।" पुद्गलद्रव्य मूर्त और अचेतन द्रव्य है। जैन आचार्य पुद्गल के स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु ये चार भेद स्वीकार करते हैं। प्रत्येक परमाणु एक स्वतन्त्र द्रव्य या इकाई है। प्रत्येक परमाणु में एक वर्ण", एक रस, एक गन्ध” और दो स्पर्श' (शीत-उष्ण अथवा स्निग्ध-रूक्ष) होते हैं। स्कन्ध पुद्गल द्रव्य अनेक परमाणुओं से बनता है। अतः स्कन्ध के कई भेद हैं- किसी स्कन्ध में दो प्रदेश होते हैं, किसी में तीन प्रदेश, इस तरह बढ़ते हुए क्रम में किसी में संख्यात प्रदेश होते हैं और किसी स्कन्ध में अनन्त प्रदेश होते हैं। किसी स्कन्ध की स्थिति एक समय की होती है और किसी की असंख्यातकाल पर्यन्त भी होती है। दो प्रदेश, तीन प्रदेश आदि से लेकर अनन्त प्रदेश तक का स्कन्धबद्ध विभाग देश कहलाता है तथा अविभाज्य एवं परमाणु प्रमाण विभाग अर्थात् एक परमाणु जितना स्थान घेरता है वह प्रदेश है। २० प्रदेश और परमाणु में इतना ही अन्तर है कि प्रदेश स्कन्ध का अंश है जो स्वतन्त्र सत्तावान
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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