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________________ 368 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन १६-२० औपशमिक-पारिणामिक औपशमिक-क्षायिकक्षायोपशमिक औपशमिक-क्षायिक- पारिणामिक | २१-२२ क्षायिक-क्षायोपशमिक | २३-२४ | क्षायिक-पारिणामिक | औपशमिक-क्षायोपशमिक पारिणामिक | क्षायिक-क्षायोपशमिकपारिणामिक | २५-२६ | क्षायोपशमिक-पारिणामिक औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक भावों का संयोग पंचसंयोगी सान्निपातिक भाव होता है। इस प्रकार विकसंयोगी के दस, त्रिकसंयोगी के दस, चतुःसंयोगी के पाँच और पंचसंयोगी का एक ये कुल २६ प्रकार सान्निपातिक भाव के गिनाए जाते हैं।" इन २६ प्रकारों में कुल छह विभाग जीव में संभव होते हैं, अतः वे छह विभाग उपयोगी हैं और शेष बीस नाममात्र के होते हैं१. द्विक संयोगी- क्षायिक-पारिणामिक (२३वां भंग) २. त्रिक संयोगी- क्षायिक-औदयिक-पारिणामिक (१४वां भंग) ३. त्रिक संयोगी- क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक (१७वां भंग) ४. चतुः संयोगी- औपशमिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक (वां भंग) ५. चतुः संयोगी- क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक (१२वां भंग) ६. पंच संयोगी- औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक-पारिणामिक(१त्वां भंग) ये छह विभाग कौन-कौनसे जीव से सम्बन्धित होते हैं वह इस प्रकार हैं1.द्विक संयोगी- क्षायिक-पारिणामिक भाव सिद्ध जीव में होता है। क्षायिक भाव से सिद्ध जीव में सम्यक्त्व और पारिणामिक भाव से जीवत्व होता है। अन्य भावों की असंभवता से सिद्ध जीव में मात्र क्षायिक भाव होता है। 2.त्रिक संयोगी- औदयिक-क्षायिक और पारिणामिक भाव सर्वज्ञ /अरिहन्त/ केवली जीव में होता है। सर्वज्ञ में क्षायिक भाव से केवलज्ञान, औदयिक से मनुष्यत्व और पारिणामिक भाव से जीवत्व एवं भव्यत्व होता है। 3. त्रिक संयोगी- औदयिक-क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव चारों गतियों में होता है। क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि औदयिक भाव से नरक-तिर्यच-मनुष्य या देवगति की प्राप्ति होना
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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