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________________ भावलोक 367 गुणवत्व, असर्वगत्व, प्रदेशवत्व, अरूपत्व आदि बहुत से पारिणामिक भाव पाये जाते हैं, परन्तु वे जीव के असाधारण धर्म नहीं होते हैं अतः उनकी यहाँ परिगणना न करके जीवों के मात्र असाधारण पारिणामिक जीवत्वादि की चर्चा की गई है। २६ ‘जीवत्वं चैतन्यमित्यर्थः । सम्यग्दर्शनादि भावेन भविष्यतीति भव्यः । तद्विपरीतोऽभव्यः ।' जीवत्व का अर्थ चैतन्यभाव है। सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूप रत्नत्रय गुण प्रकट होने की योग्यता जीव का भव्यपारिणामिक भाव है और जिस जीव में रत्नत्रय गुण प्रकट करने की योग्यता नहीं है वह जीव का अभव्यपारिणामिक भाव कहलाता है। सान्निपातिक भाव आत्मा की पर्याय कभी-कभी एक साथ दो, तीन, चार अथवा पाँच भावों में परिणमित होती है । इस प्रकार एक साथ दो आदि भावों के संयोग में आत्मा का पर्याय परिणमन करना सान्निपातिक भाव कहलाता है। कहा भी है एकत्र इत्यादि भावानां सन्निपातोऽत्र वर्तनं । यो भावस्तेन निर्वृत्तः स भवेत्सान्निपातिकः । । सान्निपातिकभाव द्विक संयोग, त्रिकसंयोग, चतुःसंयोग और पंचसंयोग के रूप में २६ प्रकार का होता है। वे २६ प्रकार इस तरह हैं द्विकसंयोगीभाव क्र. १-३ ४-६ | औदयिक-औपशमिक ७-६ औदयिक- क्षायिक औदयिक-क्षायोपशमिक १०-१२ औदयिक-पारिणामिक १३-१५ औपशमिक क्षायिक १६-१८ औपशमिक क्षायोपशमिक त्रिकसंयोगीभाव औदयिक-औपशमिक-क्षायिक | औदयिक-औपशमिकक्षायोपशमिक औदयिक-औपशमिक चतुःसंयोगीभाव/ पंचसंयोगी | औदयिक- क्षायिक- पारिणामिक औदयिक- क्षायोपशमिकपारिणामिक भाव औदयिक-औपशमिकक्षायिक- क्षायोपशमिक | औदयिक-औपशमिकक्षायिक-पारिणामिक औदयिक-औपशमिक पारिणामिक औदयिक- क्षायिक- क्षायोपशमिक औदयिक क्षायिक क्षायोपशमिक-पारिणामिक क्षायोपशमिक-पारिणामिक औपशमिक- क्षायिकक्षायोपशमिक-पारिणामिक औपशमिक- क्षायिकक्षायोपशमिक-औदयिकपारिणामिक
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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