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________________ भावलोक 365 असंयम लेश्या छह |४-६ अप्रत्याख्यानावरण कषायोदय से जन्य। कषाय और योग के मिलने से उत्पन्न भाव अथवा लेश्या को कर्म का निष्यन्द स्वीकार करने वालो के मत में आठों ही कों से जन्य भाव विशेष। मोहनीय कर्म के उदय से जन्य। मोहनीय कर्म के उदय से जन्य। | गतिनामकर्म के उदय से जन्य। मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के उदय से जन्य विशेष भाव। १०-१३ | कषाय चार १४-१६ | वेद तीन १७-२० | गति चार | २१ मिथ्यात्व अज्ञान अतत्त्वे तत्त्वबुद्धयादि स्वरूपं भूरि दुःखदं । मिथ्यात्वमोहोदयजमज्ञानं तत्र कीर्तितम् ।। २० अतत्त्व में तत्त्वबुद्धि, तत्त्व में अतत्त्वबुद्धि रूप भाव मतिज्ञानावरण और मिथ्यात्वमोहनीय कर्म से उत्पन्न अज्ञान औदयिक भाव होता है। असिद्धत्व असिद्धत्वमपि ज्ञेयमष्टकर्मोदयोद्भवं ।।" आठ कर्मों के उदय से उत्पन्न भाव असिद्धत्व औदयिक भाव होता है और यदि आठ कर्मों से मुक्त होगा तब जीव का भाव सिद्धत्व कहलायेगा। असंयम ___ अप्रत्याख्यानावरणीयोदयाच्च स्यादसंयमः ।। प्रत्याख्यानावरण, अप्रत्याख्यानावरण और संज्वलन कषायोदय से असंयम औदयिक भाव होता है। लेश्या भावलेश्या कषायोदयरंजिता योगप्रवृत्तिरिति कृत्वा औदायिकीत्युच्यते।" - कषाय और योग के मेल से उत्पन्न परिणाम लेश्याऔदयिक भाव है। कषाय - कषायाः स्युः क्रोधमानमायालोभा इमे पुनः । कषायमोहनीयाख्य कर्मोदयसमुद्भवाः ।।" कषायमोहनीय कर्म के उदय से क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूपी चार कषाय औदयिक भाव
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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