SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काललोक 355 १०५. (अ) लोकप्रकाश, 28.111 और 112 (ब) जेणोवक्कामिज्जइ सभीवमाणिज्जए जओ जंतु। स किलोवक्कमकालो किरियापरिणामभूइट्ठो।। -विशेषावश्यकभाष्य, भाग 2, गाथा 2039 १०६. (अ) 'सामाचारीयथायुष्क भेदश्चोपक्रमो द्विधा' - लोकप्रकाश, 28.113 (ब) 'दुविहोवक्कमकालो सामायारी अहाउयं चेव' -विशेषावश्यकभाष्य, भाग 2, गाथा 2040 १०७. (अ) लोकप्रकाश, 28.116 (ब) 'सामायारी तिविहा ओहे दसहा पयविभागे' -विशेषावश्यकभाष्य, भाग 2, गाथा 2040 १०८. 'भवेत्पदविभागाख्या सामाचारी महात्मना। छेदग्रन्थसूत्ररूपा दशधेच्छादिकात्वियं।। -लोकप्रकाश, 28.118 १०६. 'पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा।। पंचमा छन्दणा नाम इच्छाकारो य छट्ठओ। सत्तमो मिच्छकारो य तहक्कारो य अट्ठमो।। अब्भुट्ठाणं नवमं दसमा उवसंपदा। एसा दसंगा साहूणं सामायारी पवेइया।। -उत्तराध्ययनसूत्र, 26.2, 3 और 4 ११०. लोकप्रकाश, 28.119 १११. लोकप्रकाश, 28.120 ११२. लोकप्रकाश, 28.121 ११३. लोकप्रकाश, 28.122 ११४. लोकप्रकाश, 28.123 ११५. लोकप्रकाश, 28.124 ११६. लोकप्रकाश, 28.125 ११७. लोकप्रकाश, 28.125 ११८. लोकप्रकाश, 28.126 ११६. लोकप्रकाश, 28.127 १२०. लोकप्रकाश, 28.128 १२१. लोकप्रकाश, 28.135 और 136 १२२. जिन कर्मों की स्थिति, रस आदि कम हो सकती है, वे अनिकाचित कर्म कहलाते हैं और जिन कर्मों की स्थिति आदि कम नहीं हो सकती है, वे निकाचित कर्म कहलाते हैं। १२३. 'कार्यस्यार्यस्य वान्यस्य यो यस्यावसरः स्फुटः । __ स तस्य देशकालः स्याद् द्विधाप्येष निरूप्यते।। - लोकप्रकाश, 28.182 १२४. लोकप्रकाश, 28.189 १२५. लोकप्रकाश, 28.192 १२६. लोकप्रकाश, 28.193 १२७. लोकप्रकाश, 28.194 १२८. स्थानांग टीका, गणितानुयोग, काललोक, पृष्ठ 692 से उदधृत १२६. पमाणकाले दुविहे पण्णत्ते। तं जहा- 1. दिवसप्पमाणकाले य 2. रत्तिप्पमाणकाले य। _ -व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक 11, उद्देशक 11, सूत्र 8 १३०. अनुयोगद्वारसूत्र, सूत्र 363 १३१. 'पदेसनिप्फण्णे एकसमयट्ठिईए, दुसमयट्ठिईए, तिसमट्ठिइए जाव दससमयट्ठिईए असंखेज्जसमयट्ठिईए।" -अनुयोगद्वारसूत्र, सूत्र 364 १३२. 'समयाऽऽवलिय-मुहुत्ता, दिवस-अहोरत्त-पक्ख-मासा य। संवच्छर-जुग-पलिया, सागर-ओसप्पि-परिअट्टा।-अनुयोगद्वार सूत्र, सूत्र 365 १३३. लोकप्रकाश, 28.195 १३४. लोकप्रकाश, 28.202 १३५. लोकप्रकाश, 28.198
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy