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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन ७६. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.22.19 ५०. (अ) लोकप्रकाश, 28.74
(ब) तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.22.20 ५१. 'तिविहे काले पण्णत्ते, तं जहा- तीए, पडुप्पणे, अणागए। -स्थानांग सूत्र, तृतीय स्थान, चतुर्थ
उद्देशक, कालसूत्र ५२. 'विविधः कालः - परमार्थकालः व्यवहाररूपश्चेति। -तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.22,24 ८३. 'तीदो अणागदो वट्टमाणो त्ति तिविहो' -षट्खण्डागम जीवस्थान, 1,5.1 ५४. 'ववहारो पुण तिविहो तीदो वट्टतगो भविस्सो दु'-गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा, 577 ५५. 'तीदो संखेज्जावलिहदसंठाणप्पमाणं तु' -नियमसार, अजीवाधिकार, गाथा 31 १६. 'कालोविय ववएसो सम्भावपरूवओ हवदि णिच्चो।
उप्पण्णप्पद्धंसी अवरो दीहंतरट्ठाई।।-गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा 579 ५७. 'समयावलिभेदेण दु दुवियप्पं अहव होइ तिवियप्पं।
तीदो संखेज्जावलिहदसंठाणप्पमाणं तु।" -नियमसार, अजीवअधिकार, गाथा 31 ५८. "कदिविधो कालो?सामण्णेण एयविहो। तीदो अणागदो वट्टमाणे ति तिविहो। अथवा
गुणट्ठिदिकालो भवट्ठिदिकालो कम्मट्ठिदिकालो कायट्ठिदिकालो उववादकालो भावट्ठिदिकालो त्ति छविहो। अहवा अणेयविहो परिणामहिंतो पुधभूदंकालाभावा परिणामाणं च
आणंतिओवलंभा।" -षट्खण्डागम, जीवस्थान, 1,5,1 ८६. (अ) लोकप्रकाश, 28.93 और 94 (ब) "दव्वे अद्ध अहाउय उवक्कमे देस-कालकाले य।
तह य पमाणे वन्ने भावे, पगयंत भावेणं। चेयणमचेयणस्स च दव्वस्स ठिई उ जा चउविगप्पा।
सा होई दव्वकालो अहवा दवियं तयं चेवं।।" -विशेषावश्यक भाष्य, भाग 2, गाथा 2030 और 2031 ६०. लोकप्रकाश, 28.95 ६१. लोकप्रकाश, 28.95 ६२. द्रव्यमेव द्रव्यकालः सचेतनमचेतनं । कालोत्थानां वर्तनादि-पर्यायाणामभेदतः।-लोकप्रकाश, 28.96 ६३. (अ) 'सचिताचितद्रव्याणां सादिसांतादिभेदजा।
स्थितिश्चतुर्विधा यद्वा द्रव्यकालः प्रकीर्त्यते।।-लोकप्रकाश, 28.97 (ब) सुर-सिद्ध-भव्वऽभव्वा साइ-सपज्जवसियादओ जीवा।
खंधाणागयतीया नभादओ चेयणारहिया। विशेषावश्यकभाष्य भाग 2, गाथा 2034 ६४. लोकप्रकाश, 28.98 ६५. लोकप्रकाश, 28.99 ६६. लोकप्रकाश 28.103 ६७. लोकप्रकाश, 28.99 ६८. लोकप्रकाश, 28.103 ६६. लोकप्रकाश, 28.101 १००. लोकप्रकाश, 28.103 १०१. लोकप्रकाश, 28.105 १०२. लोकप्रकाश, 28.108 १०३. लोकप्रकाश 28.109 १०४. (अ) लोकप्रकाश, 28.110 (ब) 'नेरइय-तिरिय-मणुआ-देवाण अहाउयं तु जं जेणं।
निव्वत्तियमन्नभवे पालेंति अहाउकालो उ।।-विशेषावश्यकभाष्य, भाग 2, गाथा 2038