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________________ लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन आहारकवर्गणा के अतिरिक्त शेष सातों वर्गणा रूप में परिणमाकर उनका भोगकर त्याग कर देता है वह काल बादरद्रव्य-पुद्गलपरावर्त कहलाता है। यहाँ आहारक शरीर को छोड़कर उल्लेख किया गया है, क्योंकि एक जीव आहारकशरीर अधिक से अधिक चार बार ही प्राप्त कर सकता है। पुद्गलपरावर्त के लिए उपयुक्त नहीं है। सर्वलोकगतान् सर्वानणूनेकोऽसुमानिह । औदारिकादिसप्तकत्वेन स्वीकृत्य मुंचति ।। कालेन यावता कालस्तावानुक्तो जिनेश्वरैः । द्रव्यतः पुद्गलपरावर्त्तो बादर आगमे ।। आहारकांगभावेन स्वीकृत्योत्सर्जन पुनः । न सम्भवेत्समाणूनं मितवारं हि तद्भवेत् ।। 2. सूक्ष्मद्रव्यपुद्गलपरावर्त - एक जीव जितने काल में लोक के समस्त परमाणुओं को औदारिक आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा रूप में परिणत कर उनका ग्रहण करके त्याग देता है वह काल सूख्मद्रव्यपुद्गलपरावर्त कहलाता है। 346 सप्तानामथ चौदारिकादीनां मध्यतः पुनः । भावेनैकेनैव चौदारिकांगत्वादिनासुमान् । । सर्वान् परिणमय्याणूनेक एव विमुंचति । कालेन यावता तावान् द्रव्यतः सूक्ष्म इष्यते ।।' १६८ बादर और सूक्ष्म द्रव्यपुद्गलपरावर्त में यह अन्तर है कि बादरद्रव्यपुद्गलपरावर्त में समस्त परमाणुओं को सात औदारिकादि वर्गणा रूप की समस्त पर्यायों को भोगकर छोड़ा जाता है जब सूक्ष्मद्रव्यपुद्गलपरावर्त में औदारिकादि सात वर्गणाओं में से मात्र एक वर्गणा रूप की समस्त पर्यायों को ग्रहण करके छोड़ा जाता है । जीव जिस शरीर को धारण करता है उसी की समस्त पुद्गल पर्यायों को ग्रहण कर त्यागता है। अतः इन्हीं सूक्ष्म में ग्रहण किया गया है। 3. बादरक्षेत्रपुद्गलपरावर्त - एक जीव संसार में भ्रमण करते-करते आकाश के किसी एक प्रदेश में मरता है, वही जीव पुनः आकाश के किसी दूसरे प्रदेश में मरता है, फिर तीसरे में मरता है, इस प्रकार लोकाकाश के समस्त प्रदेशों में क्रम - अक्रम से मरने के लिए जीव को जितना काल लगता है वह बादरक्षेत्रपुद्गलपरावर्त कहलाता है। . सर्वस्य लोकाकाशस्य प्रदेशा निरनुक्रमं । स्पृश्यते मरणैः सर्वे जीवेनैकेन यावता ।। ** 4. सूक्ष्मक्षेत्रपुद्गलपरावर्त - कोई जीव भ्रमण करते-करते आकाश के किसी एक प्रदेश में
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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