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काललोक
वैक्रियवर्गणा, आहारक शरीर में परिणमन आहारकवर्गणा, तैजस शरीर में परिणमन तैजसवर्गणा, शब्दोच्चारण रूप भाषा में परिणमन भाषावर्गणा, श्वास- उच्छ्वास रूप में परिणमन श्वासोच्छ्वासवर्गणा, विचार रूप में परिणमन मनोवर्गणा और कर्मरूपी पिण्ड को कार्मणशरीर में परिणमन करना कार्मणवर्गणा कहलाती है।
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ये वर्गणाएँ क्रम से उत्तरोत्तर सूक्ष्म होती हैं। अर्थात् औदारिक से वैक्रिय, वैक्रिय से आहारक, आहारक से तैजस वर्गणा सूक्ष्म है। यथा रूई, लकड़ी, मिट्टी, पत्थर और लोहा निश्चित व समान परिमाण में लेने पर भी रूई से लकड़ी का आकार छोटा होता है और लकड़ी से मिट्टी का आकार छोटा होता है, मिट्टी से पत्थर का आकार छोटा होता है और पत्थर से लोहे का आकार छोटा होता है । परन्तु आकार में छोटे होने पर भी ये वस्तुएँ उत्तरोत्तर ठोस और वजनी होती हैं। ठीक इसी प्रकार औदारिक शरीर जिन पुद्गल वर्गणाओं से बनता है वे वर्गणाएँ रुई की तरह अल्प परिमाण वाली होने पर भी आकार में स्थूल होती हैं। वैक्रिय शरीर जिन पुद्गल वर्गणाओं से बनता है वे लकड़ी की तरह औदारिक योग्य वर्गणाओं से अधिक परमाणु वाली, किन्तु अल्प परिमाण वाली होती हैं। इसी तरह आगे-आगे की वर्गणाओं में परमाणुओं की संख्या बढ़ती जाती है, किन्तु आकार ‘सूक्ष्म, सूक्ष्मतर होता जाता है। इसका कारण यह है कि जैसे-जैसे परमाणुओं का संघात होता है वैसे-वैसे उनका सूक्ष्म, सूक्ष्मतर रूप परिणाम होता है । औदारिकादि वर्गणाओं की अवगाहना (आकार) की न्यूनता के कारण से ही अल्प परमाणु वाला औदारिक शरीर द्रष्टव्य होता है, परन्तु उस औदारिक शरीर के साथ विद्यमान रहने वाले तैजस और कार्मण शरीर उससे अधिक परमाणु वाले होने पर भी दिखाई नहीं देते हैं।
तैजस्वर्गणा के बाद भाषा, श्वासोच्छ्वास और मनोवर्गणा का क्रम आता है। इसका कारण यह है कि तैजस्वर्गणा से भी भाषा आदि वर्गणाएँ अधिक सूक्ष्म हैं अर्थात् तैजस शरीर की ग्रहणयोग्य वर्गणाओं से वे वर्गणाएँ अधिक सूक्ष्म हैं जो बातचीत करते समय शब्द रूप में परिणत होती हैं। भाषा वर्गणा से भी वे वर्गणाएँ सूक्ष्म हैं जो श्वासोच्छ्वास रूप परिणत होती हैं। श्वासोच्छ्वास वर्गणा से भी मानसिक चिन्तन का आधार बनने वाली मनोवर्गणाएँ और अधिक सूक्ष्म हैं। कर्मवर्गणा, मनोवर्गणा से भी सूक्ष्म हैं। ये वर्गणाएँ जितनी सूक्ष्म होती हैं उनमें उतने ही परमाणुओं की संख्या अधिकाधिक होती है।
अष्टविध पुद्गलपरावर्त
आठ प्रकार के पुद्गलपरावर्तनों का स्वरूप इस प्रकार है
1. बादरद्रव्यपुद्गलपरावर्त - एक जीव जितने काल में लोक के समस्त परमाणुओं को