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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन कभी-कभी अनेक रूप, कभी छोटा, कभी बड़ा, कभी आकाशगामी, कभी भूमिगामी, कभी दृश्य एवं कभी अदृश्य होता है वह शरीर वैक्रिय शरीर कहलाता है। देवों और नारकी जीवों को जन्म से प्राप्त वैक्रिय शरीर ‘औपपातिक' होता है तथा मनुष्यों और तिर्यंचों का वैक्रिय शरीर 'लब्धिप्रत्यय' कहलाता है। वैक्रिय मिश्रकाययोग- वैक्रिय और कार्मण तथा वैक्रिय और औदारिक इन दो-दो शरीरों के योग द्वारा होने वाले वीर्य शक्ति का व्यापार "वैक्रियमिश्रकाययोग" कहलाता है। (1) वैक्रिय-कार्मण मिश्रता-प्रथम प्रकार का यह वैक्रियमिश्रकाययोग देवों तथा नारकी जीवों को उत्पत्ति के दूसरे समय से लेकर अपर्याप्त अवस्था तक रहता है।२६ । (2) वैक्रिय-औदारिक मिश्रता-वैक्रिय-औदारिक मिश्रत्व वाला यह शरीर बादर पर्याप्त वायुकाय और वैक्रिय लब्धि प्रत्यय गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय एवं मनुष्य को वैक्रिय शरीर द्वारा विविध क्रियाओं के सम्पन्न होने पर परित्याग के समय होता है। आहारक काययोग- आहारक शरीरनामकर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न वीर्यशक्ति के योग से एवं आहारक वर्गणाओं द्वारा आहारक शरीर मात्र से आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन व्यापार आहारककाययोग होता है। यह योग चौदह पूर्वधर महात्माओं को ही होता है। चतुर्दश पूर्वधर मुनि संशय दूर करने, किसी सूक्ष्म विषय को जानने अथवा समृद्धि देखने के निमित्त दूसरे क्षेत्र में तीर्थंकर के पास जाने के लिए विशिष्ट लब्धि द्वारा आहारक शरीर बनाते हैं। आहारक मिश्र काययोग- आहारक और औदारिक इन दो शरीरों के द्वारा होने वाला वीर्य शक्ति का व्यापार आहारकमिश्रकाययोग कहलाता है। आहारकवर्गणाओं से गृहीत पुद्गल-स्कन्धों को आहारक शरीर रूप परिणमन से पूर्व तक तथा परित्याग करने के समय औदारिक शरीर से मिश्रता 'आहारकमिश्रकाययोग' कही जाती है। कार्मण काययोग-कार्मण शरीर नामकर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न वीर्यशक्ति द्वारा एवं कार्मण-पुद्गल स्कन्धों से बने कार्मण शरीर द्वारा आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन रूप योग 'कार्मणकाययोग' कहलाता है। यह योग विग्रह गति और जीव-उत्पत्ति के प्रथम समय में सभी जीवों को होता है एवं केवलीसमुद्घात के तीसरे, चतुर्थ और पाँचवें समय में केवलियों को भी होता है।" सभी शरीरों का मूल कार्मण शरीर है। इसके क्षय होने पर ही संसार का उच्छेद होता है। जीव विग्रह गति में भी इसी शरीर से वेष्टित रहता है। यह शरीर इतना सूक्ष्म होता है कि रूपवान् होने पर भी नेत्र का विषय नहीं बनता है। अन्य दार्शनिक ग्रन्थों में इसे 'सूक्ष्म शरीर' और 'लिंग शरीर' कहा गया