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________________ 228 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन प्रकार हैं- लोमाहार, प्रक्षेपाहार (कवलाहार) और ओजाहार। कहीं कहीं चतुर्थ विधि मनोभक्षी आहार का भी वर्णन मिलता है। रोमों के द्वारा किया गया आहार लोमाहार, कवल या ग्रास के रूप में ग्रहण किया आहार प्रक्षेपाहार, सम्पूर्ण शरीर के द्वारा ग्रहण किया आहार ओजाहार तथा मन के द्वारा गृहीत आहार मनोभक्षी आहार कहलाता है। जन्म के समय सभी जीव ओजाहार ग्रहण करते हैं। फिर पर्याप्त अवस्था में आने पर वे लोमाहार ओर कवलहार करते हैं। चार अवस्थाओं में जीव अनाहारक होता है- विग्रह गति की अवस्था में, केवलि समुद्घात की अवस्था में, शैलेषी अवस्था में और सिद्धावस्था में। १०.गुणस्थान सिद्धान्त जीवों के आत्मिक विकास की अवस्थाओं का द्योतक है। इन अवस्थाओं की भिन्नता के आधार पर मिथ्यात्व, सास्वादन, मिश्र, सम्यग्दृष्टि, देशविरति आदि चौदह गुणस्थान प्रतिपादित हैं। प्रायः मिथ्यादृष्टि संसारी जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में रहते हैं। सम्यक्त्व का प्रारम्भ चौथे गुणस्थान से होता है तथा तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान में सम्पूर्ण मोह का क्षय होने से केवलज्ञान प्रकट हो जाता है। डॉ. सागरमल जैन का मन्तव्य है कि गुणस्थान सिद्धान्त का विकास शनैः शनैः हुआ है। • CM * संदर्भ सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ, सूत्र 2.24, पृष्ठ 132 सर्वार्थसिद्धि, सूत्र 1.13. पृष्ठ 76 तत्त्वार्थसूत्र, प्रथम अध्याय, सूत्र 13 गोम्मटसार, जीवकाण्ड, मूलगाथा 659 सर्वार्थसिद्धि, सूत्र 2.24 पृष्ठ 132 गोम्मटसार जीवकाण्ड, मूलगाथा 134, पृष्ठ 269 गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका संस्कृत टीका, प्रथम महाधिकार, मूलगाथा 2. पृष्ठ 34 तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, 2.24 आचारांगनियुक्ति टीका, 1.1.38, पृष्ठ 8 लोकप्रकाश, 3.442, पृष्ठ 142 ११. आचारांग नियुक्ति टीका, 1.1.38 १२. 'चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा। -स्थानांग सूत्र, चतुर्थ स्थान, चतुर्थ उद्देशक, सूत्र 578 १३. भगवती सूत्र 7 वाँ शतक, 8वां उद्देशक आचारांगनियुक्ति टीका, अध्ययन 1, उद्देशक 1, नियुक्ति गाथा 38, पृष्ठ 8 १५. आचारांगनियुक्ति टीका, 1.1.38, पृष्ठ 8 १६. स्थानांगसूत्र, अध्ययन 4, उद्देशक 4, सूत्र 579 १७. आचारांग नियुक्ति टीका, अध्ययन 1, उद्देशक 1, नियुक्ति गाथा 38, पृष्ठ 8 १८. स्थानांग सूत्र, अध्ययन 4, उद्देशक 4, सूत्र 580
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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