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________________ 125 जीव-विवेचन (2) नौ भेद- संसारसमापन्न जीव नौ प्रकार के हैं- पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिया६२ आगति जीव के एक जन्म की भवस्थिति समाप्त होने पर अन्य जन्म में आने की योग्यता आगति कहलाती है। उपाध्याय विनयविजय इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि अन्य भवों से विवक्षित भव में उत्पन्न होने की प्राणियों की योग्यता आगति है। विवक्षते भवेऽन्येभ्यो भवेभ्यो या च देहिनाम। उत्पत्तौ योग्यता सात्रागतिरित्युपदर्शिता।।" आगति से तात्पर्य है आगमन। गति एवं आगति में अन्तर को उदाहरण से समझा जा सकता है, यथा- देवगति से कोई जीव च्यवकर (मरण को प्राप्त होकर) मनुष्य गति में उत्पन्न होता है तो देवगति की अपेक्षा से मनुष्य गति में जाना गति है एवं मनुष्यगति की अपेक्षा देवगति से आकर मनुष्यगति में उत्पन्न होना आगति है। गति-आगति का विशेष विवरण - एकेन्द्रियादि संसारी जीवों की कितनी और कौन-कौनसी गति तथा आगति है, इसका संक्षेप में स्वरूप इस प्रकार हैसूक्ष्म एकेन्द्रिय- सूक्ष्म तेजस्काय और वायुकाय जीवों को छोड़कर शेष सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों की दो गति और दो आगति होती है। वे दो गति एवं दो आगति हैं- तिर्यंच एवं मनुष्य। एकेन्द्रिय सूक्ष्म जीव मृत्यु प्राप्त कर एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संख्याता गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और सम्मूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ओर तेजस्काय एवं वायुकायिक सूक्ष्म जीव मात्र तिर्यंच गति के पूर्वोक्त रूपों में उत्पन्न होते हैं अतः सूक्ष्म तेजस्काय एवं वायुकाय के जीवों की गति मात्र तिर्यंच है। नारकी, देव, असंख्याता आयुष्य वाले तिर्यंच और मनुष्य सूक्ष्म एकेन्द्रिय में गमन नहीं करते हैं। अतः सूक्ष्म एकेन्द्रिय की आगति भी दो मानी गई है। सूक्ष्म तेजस्काय और वायुकाय की अन्य सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों की भाँति आगति दो है। बादर एकेन्द्रिय-बादर पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, प्रत्येक एवं साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की दो गति एवं तीन आगति है। अग्निकायिक तथा वायुकायिक जीव मृत्यु उपरान्त मात्र तिर्यच गति में जाते हैं। बादर पृथ्वीकायिकादि जीव एकेन्द्रियादि, गर्भज एवं सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय और संख्याता आयुष्य वाले मनुष्य में जाकर उत्पन्न होते हैं। सभी पर्याप्त-अपर्याप्त एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, गर्भज-सम्मूर्छिम तिर्यंच
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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