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लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1)
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२८. लोकप्रकाश, 11.48 २६. लोकप्रकाश, 11.49-52 ३०. लोकप्रकाश, 11.107-108
लोकप्रकाश, 11.109-111
लोकप्रकाश, 11.113-114 ३३. लोकप्रकाश, 11.115 ३४. लोकप्रकाश, 11.116-117
लोकप्रकाश, 11.118-121 ३६. लोकप्रकाश, 11.122-125 ३७. लोकप्रकाश, 11.139 -
लोकप्रकाश, 2.54-55 ३६. लोकप्रकाश, 2.56 ४०. ते ज्ञानावरणीयाथै मुक्ताः कर्मभिरष्टभिः ।
ज्ञानदर्शनचारित्राद्यनन्ताष्टक संयुताः।-लोकप्रकाश, 2.78-82 ४१. लोकप्रकाश, 2.84, 109-111 ४२. स्थानांग सूत्र के पांचवें स्थानक में कहा है कि जीव पांच द्वारों से निकलता है-पैर से, जंघा
से, हृदय से, मस्तक से अथवा सर्व अंगों से। पैरों से निकलने वाला जीव नरकगामी, उरू से निकलने वाला तिर्यंच, हृदय से निकलने वाला देवगामी और सर्वांग से निकलने वाला
सिद्धगामी होता है। ४३. लोकप्रकाश, प्रथम भाग, पृष्ठ 50 ४४. लोकप्रकाश, 2.95-96 ४५. लोकप्रकाश, 2.101-102 ४६. लोकप्रकाश, 2.131 ४७. लोकप्रकाश, 2.131 ४५. लोकप्रकाश, 2.132 ४६. लोकप्रकाश, 2.122-125 ५०. (अ) संसारिणो मुक्ताश्च तत्त्वार्थसूत्र 2.10 (ब) मूलाचार 204 (स) पंचास्तिकाय, 109 ५१. लोकप्रकाश, 4.3 से 24 ५२. लोकप्रकाश 4.25 ५३. जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भाग 4, पृष्ठ सं. 438 ५४. मूलाचार, गाथा 1202 ५५. 'प्रत्येकाः साधरणाश्च' लोकप्रकाश 5.2 ५६. - षट्खण्डागम 1/1, 1,41 ५७. गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, गाथा 191 ५८. गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, गाथा 191 ५६. लोकप्रकाश, 4.68