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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
अवयवों वाला होता है।
संदर्भ
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पारा ,2.5
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जीवाजीवस्वरूपाणि नित्यानित्यत्ववन्ति च। द्रव्याणि षट् प्रतीतानि द्रव्यलोकः स उच्यते।।-लोकप्रकाश, 2.5योजनानामसंख्येयाः कोटयः क्षेत्रतोऽमिताः। ये संस्थानविशेषेण तिर्यगर्ध्वमधः स्थिताः। .. आकाशस्य प्रदेशास्तं क्षेत्रलोकं जिनाः जगुः ।।-लोकप्रकाश, 2.3 और 7 कालतो भूच्च भाव्यस्ति। समयावलिकादिश्च काललोको जिनैः स्मृतः।-लोकप्रकाश, 2.4 और 8 लोकप्रकाश, 2.5 Dr. G.R. Jain, Cosmology: Old and New, Page 23-57 and 135-140 जिनवाणी, 15 सितम्बर 2007, विश्व व्यवस्था एवं धर्म-अधर्म द्रव्यों की अवस्थिति, डॉ. कुसुम पटोदिया के लेख से उद्धृत। सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.1 व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक 13, उद्देशक 4, सुत्त 24 लोकप्रकाश, 2.19 (अ) लोकप्रकाश, 2.23 (ब) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 13, उद्देशक 4, सुत्त 25 लोकप्रकाश, 2.51 लोकप्रकाश, 2.52 लोकप्रकाश, 11.3 लोकप्रकाश, 11.4 वर्ण पांच हैं- काला, नीला, लाल, पीला एवं सफेद।
रस पांच हैं-तिक्त, कटु, कसैला, खट्टा एवं मीठा। १७. गंध दो हैं- सुगन्ध और दुर्गन्ध।
स्पर्श आठ हैं- शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, लघ. गरु, कर्कश और कोमल। लोकप्रकाश, 11.8 लोकप्रकाश, 11.9
लोकप्रकाश, 11.11 २२. लोकप्रकाश, 11.19-20 २३. (अ) लोकप्रकाश, 11.21 की व्याख्या से उद्धृत, पृष्ठ 571
(ब) भगवती सूत्र, शतक 14. उद्देशक 4, सुत्त 8
लोकप्रकाश, 11.24 २५. लोकप्रकाश, 11.25 २६. लोकप्रकाश, 11.31 २७. लोकप्रकाश, 11.44-46
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