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________________ 77 लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) सर्वप्रथम २० हजार योजन वाले घनोदधिवलय पर आधारित होती है। घनोदधिवलय असंख्यात हजार योजन वाले धनवातवलय पर आश्रित है तथा घनवातवलय असंख्यात हजार योजन वाले तनुवातवलय पर स्थित है। इस तनुवातवलय के नीचे असंख्यात कोटि-कोटि योजन प्रमाण आकाश होता है। यह आकाश निराधार है। शेष पृथ्वियाँ भी इसी प्रकार वलयों पर आश्रित हैं। ___ बादर पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक जीवों का उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से स्थान लोक के असंख्यातवें भाग में है। वायुकायिकों का स्थान भी लोक का असंख्यातवां भाग है और वनस्पतिकायिकों का स्थान क्रमशः सर्वलोक और असंख्यातवें भाग में है। ___ पर्याप्त-अपर्याप्त भेद से छः प्रकार के विकलेन्द्रिय" (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) और तिर्यंच पंचेन्द्रिय" (जलचर, स्थलचर, खेचर) जीवों का अस्तित्व अधोलोक एवं ऊर्ध्वलोक के एक देश भाग में ही रहता है। वे तिर्यक्लोक में नदी, कुएँ, तालाब, बावड़ी, सर्व द्वीपों, समुद्रों, जलाशयों और समस्त जलस्थानों में होते हैं। उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से ये लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं। मनुष्य का अस्तित्व मात्र तिर्यक् लोक की कर्मभूमि, अकर्मभूमि, ५६ अन्तरद्वीप, अढ़ाई द्वीप-समुद्र इस तरह मनुष्य क्षेत्र के पैंतालीस लाख योजन तक सीमित है।" सम्मूर्छिम मनुष्य का उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से स्थान मनुष्य लोक के असंख्यात भाग में है।५२ गर्भज मनुष्य का स्थान तिर्यक्लोक के साथ अधोलोक में एक सहन योजन पर्यन्त होता है। नारक जीवों का अस्तित्व मात्र अधोलोक की सात पृथ्वियों में मिलता है। वहाँ नारकों के ८४ लाख नारकावास होते हैं। सातों पृथ्वियों का भिन्न-भिन्न क्षेत्रफल भिन्न-भिन्न भूमिभाग और नारकावासों की भिन्न-भिन्न संख्याएँ होती हैं।" सात पृवियाँ ८० योजन .. रत्नप्रभा शकराप्रभा | बालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा | तमःप्रभा | तमस्तमप्रभा क्षेत्रफल | १ लाख १ लाख ३२ | १ लाख २८ | १ लाख १ लाख १ लाख १ लाख ८ हजार हजार योजन |२० १८ १६ हजार हजार योजन हजार हजार हजार | योजन योजन योजन योजन भूमि १ लाख १ लाख ३०/१ लाख २६ | १ लाख १ लाख १ लाख १ लाख ३ | ७८ हजार हजार योजन | १८ हजार | १६ १४ हजार | हजार योजन हजार योजन योजन हजार योजन योजन योजन
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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