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नवतत्त्वसंग्रहः १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, एवं १४ टली, तीजे भागे ८ टली-दो चौकडी, चोथे भागे नपुंसकवेद १, पांचमे भागे स्त्रीवेद १, छठे भागे हास्य आदि ६, सातमे भागे पुरुषवेद १, आठमे भागे संज्वलन क्रोध १, नवमे भागे संज्वलन मान १, एवं सर्व भागोमे ३३ टली. दशमे गुणस्थाने एक संज्वलननी माया टली. बारमे संज्वलन लोभ टला. तेरमे १६ टली-निद्रा १, प्रचला १, ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, एवं १६ टली. चौदमे ७४ की सत्ता तो तेरमेवत्. छेहले समय सातकी सत्ता-त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, आदेय १, सुभग १, पंचेन्द्रिय १, साता वा असाता १, एवं ७ रही. 'मुक्तौ गमने सर्व प्रकृतिका व्यवच्छेद मंतव्यं. २५ अध्रुव सत्ता | २८ | २७ | २७ | २८ | २८ | २८ २८ | | २८ | २८ | २१, २१, २१
२८
अध्रुव सत्ता २८ प्रकृति लिख्यते-सम्यक्त्वमोह १, मिश्रमोह १, आयु ४, तीन गति तिर्यंच विना, वैक्रिय शरीर १, तदुपांग १, आहारक शरीर १, तदुपांग १, बंधन ५, संघातन ५, इनका स्वरूप ध्रुव सत्तामे लिख्या है, तिर्यंच विना तीन आनुपूर्वी, तीर्थंकर १, उंच गोत्र १, एवं २८. अध्रुव सत्ताका अर्थ-सदा सत्तामे न लाभे, इस वास्ते 'अध्रुव सत्ता'. दूजेमे एक तीर्थंकर नाम टला. एवं त्रीजे. चौथेथी मांडी ११ मे ताइ २८ की सत्ता, तीर्थंकर नाम एक मिला. आठमे गुणस्थाने क्षपक श्रेणि अपेक्षा २३ की, सत्ता, ५ टली-सम्यक्त्वमोहनीय १, मिश्रमोह १ मनुष्य विना आयु ३ एवं ५. नवमे २ टली-नरकगति १, नरक आनुपूर्वी १, दशमे, बारमे, तेरमे, चौदमे २१ तो नवमेवत् अने पांचवी सत्ता छेहले समय-मनुष्यत्रिक १, उंच गोत्र १, तीर्थंकर १ एवं ५ की सत्ता जाननी. २६ | सर्वघाती
सर्वघाती २०-केवलज्ञानावरणीय १, केवलदर्शनावरणीय १, निद्रा ५, कषाय १२ संज्वलन विना, मिथ्यात्वमोहनीय १, एवं सर्व २०. सर्वघातीका अर्थ-आत्माका सर्वथा गुण हणे है, इस वास्ते 'सर्वघातिक' नाम. दूजे मिथ्यात्वमोहनीय टले. तीजे, चोथे अनंतानुबंधी ४, निद्रा ३ एवं ७ टली. पांचमे अप्रत्याख्यान ४ टली. छठे, सातमे तीजी चौकडी टली. आठमे सातमेवत्. आगे दो रही-केवलज्ञानावरणीय १ अने केवलदर्शनावरणीय १. एह द्वार बंध अपेक्षा है. २७ | देशघाती २५/२५ / २४ | २३ | २३ | २३ २३ २१, २१ | १७ | १२ • • • •
१. मोक्षे जतां तो बधी प्रकृतिनो उच्छेद मानवो।