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नवतत्त्वसंग्रहः क्रिया, (६) प्राणातिपात, (७) मृषावाद, (८) अदत्तादान, (९) मैथुन, (१०) परिग्रह, एवं दश नास्ति अने सत्तावीसमे पांच इन्द्रिय टली.
१९ संवर भेद ५७ .
. १२ | २२/५७/५७, ५० | ५७ ४५ ४५/ ४५/३० ३०
ए सर्व संवरना भेद 'स्वधिया विचारितव्यं-सर्वगुणस्थान उपर विचार लेना. २० | ध्रुवबंधी ४७ ४७ | ४६ | ३९ | ३९ | ३५ | ३१ | ३१ | ३१ | २९ | १८ | १४
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ध्रुवबंधी प्रकृति ४७ लिख्यते-ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ९, कषाय १६, भय १, जुगुप्सा १, मिथ्यात्व १, तैजस १, कार्मण १, वर्ण १, गंध १, रस १, स्पर्श १, निर्माण १, अगुरुलघु १, उपघात १, अंतराय ५, एवं ४७. जां लगे एहना बंध है तां लगे अवश्यमेव बंध होइ है, इस वास्ते इनका नाम 'ध्रुवबंधी' कहीये. दूजे गुणस्थानमे एक मिथ्यात्व टली. तीजे गुणस्थानमे अनंतानुबंधी ४, निद्रानिद्रा १, प्रचलाप्रचला १, स्त्यानद्धि १ एवं सात टली. त्रीजेवत् चोथे. पांचमे अप्रत्याख्यान ४ नही. छठे प्रत्याख्यानावरण चार नही. एवं सातमे तथा आठमेके प्रथम भागमे तो सातमेवत्, दूजे भागमे निद्रा १, प्रचला १, ए, दो टली, त्रीजे भागमे तैजस १, कार्मण १, वर्ण १, गंध १, रस १, स्पर्श १, निर्माण १, अगुरुलघु १, उपघात १, एवं ९ टली. चोथे भागमे भय १, जुगुप्सा १, एवं २ टली, १८ का बंध. एवं नवमे दसमे ४ टली. संज्वलनका चौक, पांच ज्ञान, चार दर्शन, पांच अंतराय, एवं १४ का बंध, आगे नास्ति. २१) अध्रुवबंधी | ७० | ५५] ३५ | ३८ | ३२ | ३२ | २८ २७ | ४ ||
___ अध्रुवबंधी प्रकृति ७३ है.-हास्य १, रति १, शोक १, अरति १, वेद ३, आयु ४, गति ४, जाति ५, औदारिक १, वैक्रिय १, आहारक १ इन तीनोहीके अंगोपांग ३, संघयण ६, संस्थान ६, आनुपूर्वी ४, विहायोगति २, पराघात १, उच्छ्वास १, आताप १, उद्द्योत १, तीर्थंकर १, त्रसदशक १०, स्थावरदशक १०, गोत्र २, वेदनीय २, एवं सर्व ७३. अर्थ-कारण तो मिथ्यात्व आदि बंधनेका है अने ए ७३ प्रकृतिका बंध होय बी अने नही बी होय, इस वास्ते इनका नाम 'अध्रुवबंधी' कहीये. प्रथम गुणस्थानमे तीन टले-आहारक १, आहारकअंगोपांग १, तीर्थंकर १, एवं ३. दूजे गुणस्थाने १५ टली-नपुंसक वेद १, नरकत्रिक ३, जाति ४ पंचेन्द्रिय विना, छेहला संहनन १, छेहला संस्थान १, आतपनाम १, थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, अपर्याप्त १, एवं १५ टली. तीजेमे २० टली-स्त्रीवेद १, आयु ३, तिर्यंच गति १, तिर्यंच आनुपूर्वी १, मध्यके ४ संहनन, मध्यके ४ संस्थान, उद्द्योत १, अशुभ चाल १, दुर्भग
१. पोतानी मति प्रमाणे । २.त्रीजानी पेठे। ३. नथी।