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________________ ११६ नवतत्त्वसंग्रहः एक वर्गणा. एकत्र दो समय रहै तेहनी दूजी वर्गणा. इम असंख्य समयस्थिति लग असंख्याती वर्गणा जान लेनी. तथा भाव आश्री तेहि ज परमाणुया कितनेक काला, कितना ही धवला, कितना नीला, कितना पीला इम वर्ण, गंध, रस, स्पर्श करी जे परमाणु न्यारा न्यारा हुइ ते सर्वनी न्यारी न्यारी अनंती वर्गणा जाननी. एवं ४ वर्गणा. तथा कितनाक पुद्गलस्कंध थोडा परमाणु अने बादर परिणामे है ते औदारिक शरीरने अयोग्य है तिस वास्ते 'औदारिक अयोग्य वर्गणा' ५ कहीये. तिसथी अधिकतर पुद्गलस्कंध औदारिक शरीरने परिणमावा योग्य है ते 'औदारिक योग्य वर्गणा.' ६ तेहथी अधिक पुद्गलमय स्कंध सूक्ष्म परिणामी है ते औदारिकने योग्य नही अने वैक्रिय आश्री थोडा परमाणु अने बादर परिणाम है तिस वास्ते वैक्रियके काम नही आवे, इस वास्ते 'उभय अयोग्य वर्गणा' ७ कहीये. एवं कर्म योग्य वर्गणा तांइ तीन तीन वर्गणा जाननी :- एक अयोग्य, दूजी योग्य, तीजी उभय अयोग्य. अर्थ औदारिकवत् एवं वर्गणा २० होती है. अथ २१ मी ध्रुववर्गणाना स्वरूपकर्मवर्गणाथी अधिक पुद्गलमय एकोत्तर वृद्धि अनंत परमाणुरूप ध्रुववर्गणा है. इह वर्गणा चउदा रज्ज्वात्मक लोकमे सदैव पामीये, इस वास्ते 'ध्रुव वर्गणा' २१ कहीये. पिण एह एकोत्तर वृद्धिये वधती अनंती जाननी. पीछे औदारिकादि वर्गणा जगमे सदैव लाभे, तिस वास्ते तिनका नाम 'योग्य ध्रुववर्गणा' २२ कहीये. अने ए २१ मी ध्रुववर्गणा अतिसूक्ष्म परिणाम बहुद्रव्यमय भणी औदारिकादिने योग्य नही, तिस वास्ते इसकीही संज्ञा 'अयोग्य ध्रुववर्गणा' २३ है. ते ध्रुववर्गणाथी अधिक पुद्गलमय वली एक अध्रुववर्गणा है. ते पुद्गलद्रव्य चउदे रज्ज्वात्मक लोकमे कदे पामीये कदे नहि पामीये, इस वास्ते इसका 'अध्रुववर्गणा' २४ नाम. एह पिण एकोत्तर वृद्धि वाधती अनंती जाननी. एह पिण औदारिकादिकने योग्य नही, सूक्ष्म अने 'बहुद्रव्यत्वात्. तिसथी अधिक पुद्गलमय. 'शून्यतर वर्गणा' हे. शून्यतर क्या कहीये ? एक परमाणु, दो परमाणु, तीन परमाणु इम एकेक परमाणु करी वर्गणा वधे तां लगे जां लगे अनंत परमाणु मिले पिण ए वर्गणा वधतां वीचमे एकोत्तर वृद्धिनी हाण पडे अने वली पांच सात परमाणु लगे एकोत्तर वृद्धि वधे अने वीचमे वली एकोत्तर वृद्धिनी हाण पडे इम एकोत्तर वृद्धि आश्री वीचमे शून्य पडे, इस वास्ते 'शून्यतर वर्गणा. ' २५ एह पिण अनंती जाननी. तथा तिसथी अधिक पुद्गलमय अशून्यतर वर्गणा है. ते वर्गणामे एकोत्तर वृद्धि श्री वीचमे शून्य न पडे, इस वास्ते 'अशून्यतर वर्गणा' २६ ऐसा नाम. एह पिण औदारिकादिने योग्य नही. तेहथी अधिक पुद्गलमय चार प्रकारे 'ध्रुवानंतर वर्गणा' है. इस जगतमे सदैव लाभ, तिस वास्ते ध्रुव अने आरंभ्या पीछे एकोत्तर वृद्धिका अंतर न पडे, इस वास्ते अनंतर दोनो, मिली 'ध्रुवानंतर' नाम. चार भेद मोटा. एकोत्तर वृद्धिये अंतर पडे पहिली. एक फेर एकोत्तर वृद्धि अनंत लग वधीने फेर मोटा अंतर ए दूजी एवं चार जान लेनी २७ ध्रुवानंतरथी अधिक पुद्गलमय एकोत्तर वृद्धिये वधती चार 'तनु वर्गणा' है. ते पिण ध्रुवानंतर वर्गणावत् बीच बीच अंतर पडने से १. क्वचित् । २. घणां द्रव्यमय होवाथी ।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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