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नवतत्त्वसंग्रहः ____ अथ छट्ठा भेद-'मिथ्याश्रुतं'. मिथ्यादृष्टिनो भाष्यो जे भारत आदि वेद ४ प्रमुख जानना. इहां वली एक विचार है. सम्यक्श्रुत जो मिथ्यादृष्टि पढे तो 'मिथ्याश्रुत' कहीए. ते कोइ नयभेद समजे नही, रुचि पिण न हुइ तिवारे अनेकांतकू एकांत परूपीने विघटा देवे, इस वास्ते 'मिथ्याश्रुत' कहीये. अने जो सम(म्यग्दृष्टि मिथ्याश्रुत पढे तो ते 'सम्यक् श्रुत' कहीए. ते शास्त्र भणीने पूर्वापर विचारे तिवारे अणमिलता लागे वेदमे पूर्वे तो इम कह्या है जे-"न हिंसेत् (हिंस्यात्) सर्वभूतानि" पीछे फिर ऐसे कह्या है "यज्ञे पशून् हिंसेत्" ऐसा देखीने विचारे जो ए वचन तो परस्पर बाधित है तो धन्य श्रीवीतराग त्रिलोकपूजित जिहनी वाणी अनेकांतस्याद्वादरूप किहां ही बाधित नही. एह छट्ठा भेद श्रुतना. __ सादि श्रुत सातमा द्रव्ये, क्षेत्रे, काले, भावे करी चार प्रकारका है. द्रव्यथी एक पुरुष आश्री श्रुतनी आदि है. जिहां सम्यक्त्व पाइ तहांसे आदि है. क्षेत्रथी पंच भरत, पंच ऐवतनी अपेक्षा आदि है, प्रथम तीर्थंकरने उपदेशे प्रगट हूया. कालथी अवसर्पिणी कालना त्रीजा आराके अंते, उत्सर्पिणीमे त्रीजे आरेके धुरे उपजे इस अपेक्षा आदि है. भावथी. अत्र भाव ते उपयोग कहीए. जद(ब) श्रुतमां उपयोग दीया तिहां आदि कहीये. इति सप्तमं.
(३९) द्रव्यथी
क्षेत्रथी कालथी
भावथी सपर्यवसित एक पुरुष आश्री | पंच भरत, पंच | अवसर्पिणीमे | उपयोग नही तदा
सम्यक्त्व वमी वा | ऐरवते जिनशासन | पंचमे आरेके अंते, अंतश्रुत ज्ञाननो केवल पाम्या तदा | विच्छेद आश्री अंत | उत्सर्पिणीमे चौथेमे ___ अंत श्रुतनो.
श्रुतनो । अंत अनादि । घणे पुरुष आश्री | विदेह आश्री अनादि | नोअवसर्पिणी- । क्षयोपशम भाव श्रुत ९ | अनादि श्रुत जानना | सर्वाद्धा तीर्थ | नोउत्सर्पिणी आश्री | आश्री प्रवाह सदा
__ अनादि अनंत दशमा | सर्व पुरुष आश्री | सर्व क्षेत्र आश्री | नोअवसर्पिणी- | क्षयोपशम भाव अंत नही श्रुतनो | अंत नहीं | नोउत्सर्पिणी आश्री | आश्री अंत नही
| अंत नही ___ गमिक श्रुत एक सदृश सूत्र है, पिण किंचित् विशेष पामीने वार वार उचरे ते 'गमिक श्रुत' कहीए. ते 'बाहुल्येन दृष्टिवाद जानना. अगमिक श्रुत बारमा. गमिकथी विपरीत ते 'अगमिक' ते आचारांग आदि जानना कालिक श्रुत इति. अंगप्रविष्ट द्वादशांगी जानना. अनंगप्रविष्टके दो भेदआवश्यक. अवश्य करीये ते 'आवश्यक' ते सामायिक आदि षड् अध्ययन. दूजा भेद आवश्यकातिरिक्तं. ते आवश्यकथी भिन्नना दो भेद-कालिक मे दिवस निशानी प्रथम पश्चिम
१. मोटे भागे।
श्रुतयंत्रं ८