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________________ -६३ ॥ हाय! में दुद्धिए ते फल वगर विचारेज कुंवरने केम आप्पु? कदाच आप्युं तो जमीन उपर पडेलु केम आप्यु! आभ्रफळ तो बिचारु रोमनु नाशकज हतुं ॥ ५४॥ आ प्रमाणे दुर्निवार वज्राग्निनी माफक पश्चात्तापथी संतापवालो थईने ते राजा मनमानेमनमां दररोज झुरावा लाग्यो ॥ ५५ ॥ जे पुरुष आगळ पाछळनो विचार कर्या वगर काम करे छे, ते आम्रनाशक राजानी माफक मोटा पश्चातापने प्राप्त थाय छे ॥५६॥ ने कोई मूर्ख वगर विचारले कांई काम करे छे, तेनां सघळां सारां कार्यनो तरतज नाश थइ जाय छे ॥ १७ ॥ क्रोधथी लवलिन छे चित्त जेनुं एवा निर्विचारी पुरुषने बन्ने भवमा सघळा प्रकारनां दुःख प्राप्त थायछे ॥ ५८ ॥ आ प्रमाणे निविकीपणाना दोषोने जाणीने हृदयमा उभयलाक सबंधी सुख आपवावालो। विवेक राखवो जोइए ॥१९॥ ने विद्वान पोतानुं हित चाहे छे, तेणे द्रव्य, क्षेत्र काल भाव युक्त अयुक्तभां तत्पर थइने हमेशां विचारीने काम करवू जाइए ॥६० ।। मनुष्य अने पशुमां एटलोज तफावत छे के मनुष्यने तो सारां माठांनो विचार होय छे, परंतु पशुने होतो नथी. एथी जे पुरुष विचार राहत छे, ते पशुसमान छे ॥ ६१ ॥ हे ब्राह्मणो! आ प्रमाणे पूर्वापर विचार रहित आम्रघाती मूर्खनी कथा में संभळाव्वी, हवे क्षीरमूर्खनी कथा कहुछु, ते सावधान थइने सांभळो ॥१२॥ ७। आम्रमूढनी कथा। प्रसिद्ध छोहार नामना देशमां समुद्रना व्यापारनो जाणातो जलयात्रा करवामां चतुर सागरदत्त नामनो एक वाणक हतो ॥६३ ते वाणक एक वखते वहाणमां बेसीने नक्र मगर ग्रहादिथी भरेला एवा
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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