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________________ मे कोइ एने लोढार्नु कहे तेना माथामां आ डांग मारवी. कोइ प्रकारनी दया अथवा करुणा करवी नहि ॥ ९ ॥ आ प्रमाणे मीना कहेलां वचनोनो कुमारे स्विकार कयों. आ जगतमां एवो कोण छे के जे. चतुर पुरुषोना कहेलां वचनने न माने? ॥ १० ॥ एपछी ते राजकुमार खुशी थइने लोढानी डांग लइने बेसी गयो. ॥११॥ एनी पासे आवीने जे कोई कहेतो के आतो लोढानां घरेणां छे, त्यारे ते तेन वखते तेना माथामां लोढानी, डांग मारतो हतो, जे ठीकज छे जेनी व्युदाहि मति थई गइ, ते नीच सारं काम क्याथी करेः ॥ १२ ॥ जे पुरुष पोताना इष्ट जननां कहेलां सघलां वचनोने सारां अने बीजानां कहेला सघळां वचनोने नठारां माने छे, ते अधमने कोण समनावे? ॥१३॥ में पुरुष जात्यन्धनी माफक बीजानां वचनने विचारतो नथी, तेने पंडीतोए पोतानाज आग्रहमां आशक्त बुध्धि (व्युदाहि) कह्योछे ॥ १४ ॥ मनोवेगे कह्यु के हे ब्राह्मणो, कदापि सुमेरु पर्वत तो हाथना आचकाथी तोडी शकाय परंतु व्युदग्राही पुरुष वचन वडे कोई प्रकारे पण समजावीशकातो नथी॥१५॥ जे प्रमाणे जात्यंन्धे सोनामयी आभूषण छोडीने लोढानां आभूषण पहेर्थी, ते प्रमाणे अज्ञानरुपी अंधकारथी आंधळो पुरुष उ.तम वस्तुने छोडीने नठारी ने ग्रहण करे छे ॥ १६ ॥ जे मूढ हमेशां असुंदरने सुंदर माने छे, तेनी आगळ बुद्धिमान पुरुष सुंदर वचन कादि कहता नथी ॥ १७ ॥ आ सघळा लोक कामार्थी पुरुषोथी ठगाय छे, ते माटे शुद्ध बुध्धि सत्पुरुषोए ए वातने हमेशा विचारता रहेवी जोइए ॥ १८॥ मनोवेगे कह्यु के हे प्राह्मणो! में ब्युद्वाहि ( हठयाहि ) नुं वर्णन तो कर्यु. हवे पि-तदूषित मूढनी कथा कहुंछु, ते एकचितथी सांभळो ॥ १९ ॥
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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