SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૪. प्रकरण ७ मुं ए पछी मनोवेगे कंके हे ब्राह्मणो ! उपर प्रमाणे विवेक रहित मूढ पुरुषनी कथा तो तमने कही. हत्रे पोतनाज अभिप्रायमा दृढ एवा व् युद्धाहि ( हठीला ) पुरुषनी कथा कहुं हुं ते सांभळो. ॥ १ ॥ 1 ४ । व्युद्धाहि मृढ पुरुषनी कथा | एक बखत नंदुरद्वारी नामनी नगरीमां दुर्द्धर नामनो एक राजा हतो, तेने जन्मधी आंधळो जात्यन्ध नामनो एक पुत्र थयो || २ || ते मोटो थयेथी दररोज भीखारीओने पोतानो हार, कंकण, केयुर, कुंडलादि आभुषणो दान कर्या करतो हतो || ३ || आ प्रमाणे कुमारनुं अलौकिक दान जोईने राजाना मंत्रीए राजाने कह्युं के, हे राजा ! कुमार साहेबे तो सघळो खजानो दान आपीने खाली करी दीधो ॥ ४ ॥ त्यारे राजाए कयुं के - हे सत्पुरुष ! जो एने घरेणां न आपीए तो ए हमेशां भोजननो त्याग करी देशे, त्यारे हुं शुं करूं ! ॥ ५ ॥ मंत्रीए कह्युं के हुं एनो कोई पण उपाय करीश. राजाए कह्युं के हुं ना कहेतो नथी ॥ ६ ॥ ते पछी मंत्रीए लोढाना घरेणां अने जरूर कोई उपाय कर, याचकोने मारवाने माटे एक लोखंडनी डांग लावीने राजकुमारने आपी अने कहां के, - ॥ ७ ॥ हे तात ! आ घरणां पंडितोबडे पूजवा लायक कुलक्रमथी आवेला छे, माटे एने पहेरो अने ए चरणां कोईने पण आपशो नाहि. जो आपशो तो तमारुं राज्य नाश पामशे ॥ ८ ॥
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy