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________________ ६२ छे, संवळा परिश्रमने दूर करे छे, जेनुं शरीर कोई प्रकारे पण निंद्य नथी. बीजुं तो शुं? आ लोकमां स्त्रीओ सिवाय इन्द्रिओने सघला प्रकारनं सुख आपवावाळी बीजी कोई पण वस्तु नथी ॥ ८३ ॥ हे ब्रह्मचारी ! जो स्त्रीओना सेवनथी सवळा पुरुष गांडा थई जाय छे तो शुं आ जगतमां विचारवान नथी ! एटले तमारा मूर्खज छे, माटे एवं कदापि ? स्त्री संगधी रत थयलो पुरुष कोई पण कहवा प्रमाणे तो स्त्रीवाला सघळा पुरुष नथी ॥ ८४ ॥ पोत पोताना मनने प्रिय जे जेने रुचे तेम कहो. जगतमा साना विचार जुदा जुदा छे, ते अनिवार्य छे, परंतु मारो मत तो संशय रहित एज छे के ससारमां स्त्रीना जेवी सुखकारी वस्तु बीजी कोई पण नयी ॥ ८५ ॥ आ प्रमाणे कहीने ते मूढ ब्राह्मण पोते बे तूंबडी लईने एकमा भियतमानां हाडकां अने बीजामां बटुकना हाडकां भरीने गंगाजीमां नांखवाने माटे घणो जलदथी चालवा मंडी गयो ॥ ८६ ॥ रस्तामां जतां कोई एक नगरमां तेनो ते नीच शिष्य बटुक मळी गयो. गुरुने जोईनेज तेनुं सवकुं शरीर कांपवा लाग्युं, लाचार, गुरुने पगे पडीने ते बटुक हे त्रिभो ! मारो अपराध क्षमा करो आ प्रमाणे प्रार्थना करवा लाग्यो ॥ ८७ ॥ ते ब्राह्मणे पूछयुं के, तुं कोण छे ? त्यारे वणा नम्र स्वभावथी बटुके कयुं के, हे विभो ! आपना चरणकमलोना सेवनथी छे जीवन जेनुं एबो, हुं आपनो यज्ञ नामनो बटुक हुं ॥ ८८ ॥ आ प्रमाणे सांभलीने ते मूढ ब्राह्मण कहेवा लाग्यो के, अरे ! ते मारी चतुर बटुक क्या ? ते तो बळी गयो. तुं तो कोई बीजोज ठग छे. जे मूर्ख तारी लगाईने न समजे तेवाने जईने ठग. अहिं तारो दाब वालशे नहि ॥ ८९ ॥ आ प्रमाणे कहने ते कोई
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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