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________________ अत्यंत आलिंगन करतो ते बटुक पार्वतीने आलिंगन करेला महादेवजीने तृण समान पण मानतो नहोतो ॥ २९ ॥ स्त्री पुरुषोने मेळववावाळो कोई दूत नथी अने संग कराववाने कामदेव पण जता नथी, एतो आंखोना कटाक्षाथी पोते पोतानी मेळेज तरत मळी जाय छे ॥ ३० ॥ खरेखर मदनयुक्त व्यभिचारिणी युवान स्त्री पुरुषने जोईन जो कई पण कर्या वगर बेसी रहे, तो एनाथी वधार आश्चर्य बीजुं शुं छे ? ॥ ३१ ॥ जे प्रमाणे अग्निना तापथी घीनो घडो पोतानी मेळेज पीगळी जाय छे, ते प्रमाणे स्त्रीवडे स्पर्शन करलो पुरुष तरतम मोहित थई जाय छे ॥ ३२ ॥ आ मनुष्य पोतानी स्त्रीवडे चहेरारुपी अमृतने पीने अनेक प्रकारना भोगोने प्राप्त थईने पण एकांतमां परस्त्री मळेथी तरत क्षेाभने प्राप्त थई जायछे ॥३३॥हवेआ बटुकतो कामथी पीडित मदोन्मत्ततरुण अवस्थानो धारक छे, माटे एकांतमा तरुण परस्त्री मळेथी केम क्षोभने प्राप्त नथाय॥३४॥ आ प्रमाणे दृढ प्रेमरुपी फांसीथी बांधेलु छे चित्तं जेनुं एवा बटुक अने यज्ञाने भोग समुद्रमा मग्न रहेतां चार महिना थई गया ॥ ३५ ॥ एक दिवस ते बटुकने उदास जोईने प्रेमना भारथी नम्रीभूत यज्ञाए कह्यु के,हे प्रभो ! आज तमे चिंतातुर केम देखाओ छो ? ते मने कहो ॥ ३६ ॥ बटुके कथु के, हे कान्ते ! तारी साथे लक्ष्मि अने विष्णुनी माफक सुख भोगवता घणा दिवस वीति गया परंतु-॥ ३७ ॥ हे तन्त्रि ! हवे भट्टजीने आववानो वखत पासे आवी गयो, माटे हवे शुं करुं अने मनने अतिशय प्यारी तने छोडीने हुं क्यां जाऊं॥ ३८ ॥ जो अहिंआं रहुं तो मोटुं दुःख छे, अने जो जाऊं छु तो मवाने माटे पग उपडतो नथी,
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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