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________________ ४४ नांखे छे, ते प्रमाणे रक्तपुरुषने निवारण न करी शकाय एवा बाणोवडे कामदेव मारी नांखे छे || ९|| रक्तपुरुषने जोईने सारा माणसो तो दिलगीरी करे छे अने दूर्जन माणसो मस्करी करे छे, तथा घणा लोको तिरस्कार पण करे छे, अथवा एबी कई आपदा छे के जेने रक्तपुरुष भोगवतो नथी ? ॥ १० ॥ बुद्धिवानोए रागने उपर प्रमाणे दूषण जाणीने छोडी देवो जोईए. एवां कोण बुद्धिमान छे के जे सर्पने झेरनुं घर जाणवा छतां पण न छोडे ! ॥ ११ ॥ ए पछी ते बहुधान्यके क्रीडानी साथ प्रफुल्लित कान्तिवाला प्रियाना मुखरूपी कमलने जोई घरना बारणा आगळ उभा रहीने रसोईखाना तरफ जोयुं ॥ १२ ॥ अने क्षणवार उभा रहीने पोताना मनने प्यारी एवी कुरंगीने कह्युं के हे कुरंगी, मने जलदथी भोजन आप, विलंब केम करे छे ! ॥ १३ ॥ त्यारे ते पुरुषोनो नाश करवावाळी कुटिल अभिप्रायने धारण करवावाळी कुरंगी यम राजाना भयानक धनुषनी माफक डोळा चढावीने पोताना पतिने कहवा लागी के ॥ १४ ॥ हे दुष्ट बुद्धि ! पूर्व पुरुषोनी मर्यादा पाळवाने माटे जेनी पासे समाचार मोकल्या, ते तारी माने घेर जा अने त्यांज भोजन कर ॥ १५ ॥ जुओ ! जे कुरंगीए पोतेज सुंदरीने कह्युं हतुं के पति आज तारेज घेर जमशे, अने पछी पोतेज पतिनी आगळ क्रोध करे छे, जे ठीकज छे, जे स्त्रीओए पोताना पतिने वश करी लीधो छे ते कयो अपराध करती थी ! ॥ १६ ॥ एवो रिवाजज छे के दुष्ट स्त्री पोते अन्याय करीने पोतानो ते दोष छुपाववाना कोप कर्या करे छे ॥ १७ ॥ कुटिल अभिप्रायथी - पतिउपर अभिप्रायवाली स्त्रीओ
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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